Saturday, 1 December 2007

राम शिला या एक और चुनावी मुद्दा

आज ऑफिस आते वक़्त एक तथाकथित राष्ट्रवादी पार्टी का प्रचार रथ( जीप) पीछे से शोर मचाते बगल से निकला। इस रथ पर एक शीशे के एक्वेरियम मे कुछ तैर रहा था। कुछ आगे जाकर ये रथ एक नुक्कड़ पर रूक गया। कौतुहलवश मैने भी अपनी मोटरसाईकिल उस तरफ मोड़ दी।
- राम धुन के भजन के साथ उस पार्टी के कारसेवको ने उस पत्थर को सब लोगो को राम शिला कह कर, पूजा करने कि सलाह दी। मैंने उस पत्थर को हाथ से स्पर्श करने का अनुरोध किया।
- वो पत्थर, पत्थर न होकर मूंगे कि चट्टान थी। हालांकि इस बात को वहा "सेवको " को बताना अपनी सेवा करवाने जैसा था, इसलिए चुपचाप रामजी कि मूर्ति को प्रणाम कर, मै वापस अपनी राह पर चल पड़ा।
- राम सेतु भारतीय जनमानस के मन मे सदियों से रचा बसा है। इस लिए कार सेवको कि वो चट्टान, पत्थर नही है तो , इससे राम सेतु को कोई फर्क नही पड़ता। राम सेतु रामायण मे वर्णित है तो ये हमारे लिए पूज्य है।
- लेकिन इस पवित्र सेतु को मुद्दा बना कोई पार्टी अपना उल्लू सीधा करे तो ये सरासर गलत है।
- हमारे देश के कुछ दल इसी तरह के भावनात्मक मुद्दों के जरिये चुनाव जीतना अपना शगल बना चुके है। ये हरकत न सिर्फ देश के लोकतंत्र के साथ मजाक है, बल्कि ये हम हिन्दुस्तानियों कि भावनाओ के साथ भी भद्दा मजाक है।

3 comments:

राज भाटिय़ा said...

Kamran Perwaiz भाई सलाम, अन्धो मे काना राजा, बाली कहावत सुनी थी,

Anonymous said...

"कुछ दल इसी तरह के भावनात्मक मुद्दों के जरिये चुनाव जीतना अपना शगल बना चुके है।"

बाकि के दल चुनाव कैसे जितते है?

अरविंद चतुर्वेदी said...

आस्था का प्रश्न है तो मै बिना किसी विरोध के सर नवा देता हूँ। भारतीय आस्था और विॾान की छनती नही है। रही बात राजनीति की तो बिना किसी पूवाॻग्रह से देखा जाए तो सभी एक जैसे ही दीखते हैं। सभी को मौक़ा मिलता है सत्ता सुख हरेक दल भोगना चाहता है। यहां कोई जाति के नाम पर तो कोई धमॻ के नाम पर। ऐसे में कामरान जी कैसे इनमें अन्तर कर लेते हैं। लेख आपका विचार है आप लिख चुके हैं। फिर भी मुझे टीस होती है कि आप भी इन्ही दलों की भांति पूवाॻग्रह से घिरे रहते हैं।