
एक बार फिर मुल्क कि फिजा खराब कि जा रही है। ये सब हो रहा है, एक पुल के नाम पर। सेतु समुन्द्रम प्रोजेक्ट से सम्बंधित एक मुकदमे मे केंद्र सरकार जो हलफनामा दिया, वही इस रगडे कि वजह बन गया है। अपने हलफनामे मे ASI ने राम सेतु के अस्तित्व को तो नकारा ही साथ ही "राम जी" के अस्तित्व पर भी सवाल खड़ा कर दिया।
- राम हों या मोहम्मद, ईसा मसीह हों या कृष्ण किसी वैज्ञानिक प्रमाण के मोहताज नहीं है। ये लोगों की भावनाओं, उनकी आस्थाओं का प्रतीक हैं।
- दरअसल केंद्र सरकार का ये हलफनामा परमाणु मुद्दे से आम लोगो को दूर करने और अपने वामपंथी साथियों कि अकड़ को कम करने के लिए इस्तेमाल किया गया लगता है। वामपंथी इस हो हल्ले मे अपनी बात नही कह सकते, और यही केंद्र सरकार चाहती है।
- जहा तक BJP का सवाल है तो उनके लिए तो "बिल्ली के भाग्य से छिका टुटा" है। UP कि हार से बिखरती इस रामलीला मंडली को नया ऑक्सिजन मिल गया।
- राम के अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लगाने की कोई आवश्यकता नहीं थी। आस्था के प्रश्न उठाने और उसे सतही ढंग से झुठलाने की सारी प्रक्रिया बार-बार इसीलिए दोहराई जा रही है क्योंकि मुद्दों पर परिपक्व तरीक़े से बहस करने की राजनीतिक परंपरा अभी तक ठीक से स्थापित नहीं हो सकी है। सरकार ही नहीं, सभी राजनीतिक दलों को यह समझदारी दिखानी चाहिए और बहसों को हमेशा मुद्दों पर केंद्रित रखना चाहिए, राजनीति के अखाड़े में धर्म पर बहस, मंदिरों-मस्जिदों में राजनीतिक बहस हमेशा से जटिलता पैदा करते रहे हैं.