Monday, 22 October 2007

बंदर लीला


रविदास मार्ग से करीब हर दिन ऑफिस के लिए आते वक़्त एक नजारा आम होता है। महंगी कारे फुटपाथ से लगी रहती है, और उसमे से निकला एक हाथ ( हाथ शरीर से लगा होता है और मन, पाप छुपाने के लिए भलाई करता है।) मौसमी फलो को, जो कभी कभी काफी महंगे भी होते है , वानर देवता को उदरस्थ करने के लिए देता जाता है।
- हालांकि वही एक नोटिस बोर्ड भी लगा है। जिसपर बंदरो को किसी भी तरह का खाने का सामान देने कि मनाही लिखी है। लेकिन ऐसी ना जाने कितनी नोटिस लगी रहती है, इनकी परवाह कौन करता है। और तो और कई बार इसी बोर्ड पर बंदर महाराज बिराजे रहते है, और दानवीर का हाथ केले का भोग लगाता रहता है।
- रविवार को दिल्ली प्रदेश भाजपा के उपाध्यक्ष बाजवा जी कि मौत ने एक बार फिर समूची दिल्ली मे आवारा जानवरों कि समस्या कि तरफ लोगो का ध्यान खीचा है। हालांकि फौरी ऐलान के बाद सरकार और नगर निगम इस बारे मे कुछ खास नही करने वाला है। ये बात अटल सत्य है।
- हालांकि हर दिन होते अतिक्रमण ने बहुत से जानवरों से उनका नैसर्गिक आवास छीन लिया है। यही वजह है कि ये जानवर आबादी मे घुस आये है। दिल्ली जैसे शहर मे जब हालात ऐसे है तो बाकी जगहों पर जानवरों के रहने वाली जगहों पर होने वाला अतिक्रमण और आबादी को आवारा जानवरों से हो रही परेशानियों का क्या हाल होगा ये तो बस इसे झेलने वाले ही जानते होंगे।

1 comment:

Udan Tashtari said...

चिन्ता जायज है. ध्यान देना चाहिये इस ओर. बाजवा जी के विषय में पता चला था कि बंदर भगाते समय छत से गिर कर उनका स्वर्गवास हो गया. अफसोसजनक.