" चालकों को निर्देश दिया जाता है कि गेयर बदलने के लिये कलच का प्रयोग करे। गाडी बंद करने के बाद चाभी निकाल ले। " ये वाक्य करीब करीब हर डीटीसी बस मे चालक के नजदीक लिखी रहती है। बावजूद इसके मैंने कभी चालकों को कलच का प्रयोग करते हुए नही देखा। कल बस से सफ़र के दौरान चालक कि इस "तेजी" पर ध्यान गया। बिना कलच दबाये वो ऐसे गेयर बदल रहा था , जैसे गोवा मे सरकार बदलती है। शायद यही ग़ैर जिम्मेदाराना रवैया है कि बहुत कम वक्त मे DTC कि बसें खटारा हो जाती है। चालक, बसो को सरकारी सम्पति मान कर ऐसे ही रगड़ते रहते है। यही सब वजहे है कि दिल्ली परिवहन को हर दिन करोडो का घाटा होता है।
- निजी बस मालिक साल दो साल मे अपनी बसो को २ से ४ कर लेते है वही, सरकारी परिवहन व्यवस्था हमेशा घाटे का सौदा साबित होती है।
Monday, 30 July 2007
Saturday, 28 July 2007
जो कहते है दर्द के मारे वो मत लिखो
9 जुलाई को chhattisgarh के errabore मे पुलिस के गश्ती दल पर हमला हुआ था। CRPF के १६ जवानों सहित जिला पुलिस के जवान और SPO भी इस नक्सली हमले मे खेत रहे। मुझे अपने stringer और Bureau Head से मुझे जो खबर मिली उसके अनुसार ८०० कि तादाद मे नक्सलियों ने तलाशी अभियान से लौट रही पुलिस पार्टी पर हमला किया था। अपने हफ्तावार प्रोग्राम के लिए मैंने स्टोरी बनायीं जिसमे घटना का विवरण और राज्य मे बढती हिंसा पर जोर था। अपनी स्टोरी मे मैंने नक्सल समस्या के हल के लिए बंदूक के इस्तेमाल को ग़ैर जरुरी बताया, इसके साथ साथ विकास योजनाओ मे जनता कि सीधी भागीदारी और भूमि के समान वितरण को नक्सल समस्या के समूल खात्मे के लिये जरुरी बताया था। जाहिर सी बात है छत्तीसगढ़ मे हिंसा बढ रही है, इसका मतलब है कि वो जरुरी काम नही हो रहे है जो शासन को करने चाहिऐ थे। स्टोरी एडिट होकर तैयार थी के इसे अपने सिनिअर्स को दिखाने का हुक्म मिला ।
- स्टोरी preview करने के बाद मुझसे कहा गया कि" पहले नक्सलियों के साथ थे क्या। " मेरे जवाब मिलने से पहले ही हुक्म मिला के " स्टोरी सरकार और पुलिस के पक्ष मे करो।
- क्या करता, अगले आधे घंटे मे वो स्टोरी बदल चुकी थी।
-ऑफिस से लौटते वक्त मेरी जुबान पर ये शेर था.........
- स्टोरी preview करने के बाद मुझसे कहा गया कि" पहले नक्सलियों के साथ थे क्या। " मेरे जवाब मिलने से पहले ही हुक्म मिला के " स्टोरी सरकार और पुलिस के पक्ष मे करो।
- क्या करता, अगले आधे घंटे मे वो स्टोरी बदल चुकी थी।
-ऑफिस से लौटते वक्त मेरी जुबान पर ये शेर था.........
हाकिम कि तलवार मुक़द्दस होती है,
हाकिम कि तलवार के बारे मे मत लिखो।
वो लिखो बस जो भी अमीरे- शहर कहे,
जो कहते है दर्द के मारे मत लिखो।
Tuesday, 24 July 2007
'बस' के सफ़र से बस तौबा

दिल्ली मे आज कल बस मे सफ़र करना सिर्फ सफ़र नही बल्कि " suffer" करना है। दिल्ली सरकार ने अपने तुगलकी फैसले मे एकाएक सारी निजी बसो को बंद करवा दिया है। बहाना है इनकी रफ़्तार पर रोक लगाने का, जिसके बारे मे लाल बत्ती मे घूमने वालो का कहना है कि ये जानलेवा है। हालांकि आकडे बताते है कि निजी बसो जिस तरह सड़को को रौंदती है, आम लोगो को कुचलती है, DTC उससे पिछे नही है। डीटीसी का स्टाफ वैसा ही रुखा और बेहूदा होता है जैसा ब्लू लाईन का।
- आज हालत ये है कि आप घंटो स्टाप पर खडे है और सडक से बस नदारद है। दिल्ली कि करीब ६७ फीसद जनता निजी परिवहन का उपयोग करती है। सरकार के एकाएक तुगलकी फैसले ने सफ़र करना मुश्किल बना दिया है।
- इस हो हल्ले मे सबसे ज्यादा पीसी जा रही है वो कामकाजी महिलाये जो हर दिन इन बसो का इस्तेमाल करती है। ये जानकर भी कि इस बस मे जाने का मतलब है, अपनी बेइज्जती करवाना, ये मेहनतकश महिलाये सफ़र करने को मजबूर है।
Friday, 20 July 2007
मीडिया पर दोष
आज के नवभारत टाइम्स मे " शरद यादव " का एक कॉलम आया है। इसमे उन्होने दिल्ली के हालिया सार्वजनिक बस के विवाद मे मीडिया कि भागीदारी पर अपने सुविचार रखे है। शरद यादव ने इस कॉलम मे कहा है कि दिल्ली सरकार द्वारा बेलगाम बसो पर कि गई कारवाई, सरकारी कदम न होकर मीडिया द्वारा डाले गय दबाव का नतीजा है।
- शरद यादव ने आगाह किया है कि " नालायक मीडिया " फालतू के मुद्दे उठा कर माहौल बनता है और ऐसे मे इन्हें देख कर कि गई कारवाई बेजा है।
- मान भी लेते है कि मीडिया द्वारा किसी मुद्दे का दिखाया जाना, मीडिया कि जरूरत होती है, ना कि उसकी सामाजिक जिम्मेदारी। ऐसे मे अगर मीडिया अब जन सरोकार के मुद्दे गंभीरता से ले रहा है तो उन्हें परेशानी क्यो कर हो रही है। दिल्ली कि बसो मे जिन हालातो मे आम आदमी सफ़र करता उसका अंदाजा इन नेता लोगो को नही है। अगर होता तो आज हालात इतने खराब नही होते।
- कौन नही जानता कि दिल्ली के सारे निजी बस इन्ही नेताओ के है। इन बेलगाम दौड़ती बसो से आम आदमी को बचाना, या यु कहे इनकी सच्चाई बयां करना मीडिया का काम है, और वो ये बखूबी कर रहा है।
- शरद यादव ने आगाह किया है कि " नालायक मीडिया " फालतू के मुद्दे उठा कर माहौल बनता है और ऐसे मे इन्हें देख कर कि गई कारवाई बेजा है।
- मान भी लेते है कि मीडिया द्वारा किसी मुद्दे का दिखाया जाना, मीडिया कि जरूरत होती है, ना कि उसकी सामाजिक जिम्मेदारी। ऐसे मे अगर मीडिया अब जन सरोकार के मुद्दे गंभीरता से ले रहा है तो उन्हें परेशानी क्यो कर हो रही है। दिल्ली कि बसो मे जिन हालातो मे आम आदमी सफ़र करता उसका अंदाजा इन नेता लोगो को नही है। अगर होता तो आज हालात इतने खराब नही होते।
- कौन नही जानता कि दिल्ली के सारे निजी बस इन्ही नेताओ के है। इन बेलगाम दौड़ती बसो से आम आदमी को बचाना, या यु कहे इनकी सच्चाई बयां करना मीडिया का काम है, और वो ये बखूबी कर रहा है।
Wednesday, 18 July 2007
आओ खेले मांगली मांगली
सुना था "रेखा " मांगलिक थी, इस लिए जिसने भी उससे शादी कि वो धरती पर रेखा कि सेवा नही कर सका। खैर रेखा कि बात बाद मे। अभी हाल मे एय्श कि शादी हुई। उसकी भी शादी मे मंगल का दोष था, इस लिये ना जाने " angry young ? man " ने किस किस से उसकी शादी करायी, फिर अपने सुपुत्र अभिषेक के साथ उसका " पाणी ग्रहण" संस्कार करवाया।
- आज हमारे न्यूज़ रूम मे भी यही बहस का विषय बना था। लड़को को तो कोई भी भली लडकी मिल जाये तो वो " तर " जाये, इसलिये न्यूज़ रूम के चन्द कुवारे ( गौर करे ये बहुत कोशिशो से बचे है) लड़को को इसमे कोई दिलचस्पी नही थी। लडकिया अपने जन्मपत्री को लेकर ऐसे बांच रही थी जैसे बनारस का कोई पंडा अपने श्री मुख से पाठ कर रहा हो। कोई बोल रही थी लड़का लड़की दोनो का मांगलिक होना बहुत शुभ होता है। तो कोई लड़को का मांगलिक होना शुभ बता रही थी।
- पता नही क्यो पढे लिखे लोग भी इस तरह के अंधविशवास को ढोते है। ये ठीक वैसे ही है जैसे बहुत से लोग नयी गाडी लेकर पहले मंदिर जाते और उसे कई तरह के निशानों से पोत लेते है। मोटे सेठ अपने यहाँ काम करने वाले मजदूरों को वाजिब पगार नही देता लेकिन , " जय माता दी" के नाम पर लाखो का दान दे देता है।
- साथ काम करने वाली इन लड़कियों कि हालत रेत मे फसे उस आदमी कि तरह है जिसे हमेशा कुछ दुरी पर पानी का नख्लिस्तान नजर आता है।
- हालांकि सभी बडे बडे अदारो से पढ़ कर आयी है। वो भी दिल्ली के कालेजो से जहा सबो का दाखिला भी नही होता। लेकिन लगता है ये सिर्फ डिग्री के एतेबार से भारी है, दिमागी एतेबार से ये ना सिर्फ ये हलकी है बल्कि खाली भी है।
- आज हमारे न्यूज़ रूम मे भी यही बहस का विषय बना था। लड़को को तो कोई भी भली लडकी मिल जाये तो वो " तर " जाये, इसलिये न्यूज़ रूम के चन्द कुवारे ( गौर करे ये बहुत कोशिशो से बचे है) लड़को को इसमे कोई दिलचस्पी नही थी। लडकिया अपने जन्मपत्री को लेकर ऐसे बांच रही थी जैसे बनारस का कोई पंडा अपने श्री मुख से पाठ कर रहा हो। कोई बोल रही थी लड़का लड़की दोनो का मांगलिक होना बहुत शुभ होता है। तो कोई लड़को का मांगलिक होना शुभ बता रही थी।
- पता नही क्यो पढे लिखे लोग भी इस तरह के अंधविशवास को ढोते है। ये ठीक वैसे ही है जैसे बहुत से लोग नयी गाडी लेकर पहले मंदिर जाते और उसे कई तरह के निशानों से पोत लेते है। मोटे सेठ अपने यहाँ काम करने वाले मजदूरों को वाजिब पगार नही देता लेकिन , " जय माता दी" के नाम पर लाखो का दान दे देता है।
- साथ काम करने वाली इन लड़कियों कि हालत रेत मे फसे उस आदमी कि तरह है जिसे हमेशा कुछ दुरी पर पानी का नख्लिस्तान नजर आता है।
- हालांकि सभी बडे बडे अदारो से पढ़ कर आयी है। वो भी दिल्ली के कालेजो से जहा सबो का दाखिला भी नही होता। लेकिन लगता है ये सिर्फ डिग्री के एतेबार से भारी है, दिमागी एतेबार से ये ना सिर्फ ये हलकी है बल्कि खाली भी है।
Tuesday, 10 July 2007
ये सुधरने वाले नही है।
बस पूरी रफ़्तार से भागी जा रही थी। जून कि गर्म दोपहर मे बस का ड्राइवर जल्दी से जल्दी डिपो पहुचना चाह रहा था। बहुत से बस स्टैंड को उसने बिना रुके पार कर लिया। हालांकि वो यहाँ भी नही रुका लेकिन हॉस्पिटल होने कि वजह से यहाँ भीड़ थी, और ना चाहते हुए भी उसे बस कि रफ़्तार धीमी करनी पडी। नकाब ओढ़े एक औरत बस मे चढ़ी। उसके हाथ मे एक बच्चा था, जो सोया था या बेहोश था कहा नही जा सकता। धीमे कदमो से आगे बढते हुए उस औरत ने एक सीट पर अपना गन्दा सा झोला रखा और बगल वाली सीट पर बैठ गई। बस का कंडक्टर किसी जल्दीबाजी मे नही था। उसने एक हल्की से नजर उस औरत पर डाली और अपने सीट पर धंसा रहा। बस मे उस औरत को मिला कर ६ जने थे। ड्राइवर और कंडक्टर, वो औरत, एक थुलथुल सेठ, किसी सरकारी ऑफिस का नाकारा बाबु, और FM सुनता एक विद्यार्थी।
- बस अब फिर अपनी रफ़्तार पकड़ चुकी थी। मंजिल ज्यादा दूर नही थी लेकिन एक नामुराद "लाल बत्ती " कि वजह से बस मे ब्रेक लगाना पड़ा। वो तो ड्राइवर बत्ती क्रॉस कर जाता, लेकिन एक सिपाही किनारे खड़ा था, इसलिये रुकना पड़ा।
- सिग्नल अभी लाल ही था इतने मे एक खुबसुरत बाला ने बस के फर्श पर अपना नाजुक कदम रखा। बस जोदार ढंग से हिली' लगा उस खुबसुरत बाला के कदमो ने भूचाल ला दिया। लेकिन सामने नजर डाली तो पता चला कि गौ माता सड़क पर विराजमान थी इसलिये ड्राइवर ने ब्रेक लगाया है।
- लेकिन उस लडकी के मिनी स्कर्ट और झिलमिले शर्ट मे कुछ नही, बल्कि बहुत कुछ ऐसा था जो देखने लायक था। बस मे जैसे ठण्डी हवा का झोंका आ गया था। कंडक्टर खड़ा हो कर मुस्तैद हो गया था। ड्राइवर बस को ऐसे चलाने लगा जैसे मक्खन पर छुरी चला रहा हो। मोटा सेठ साँस रोके अपने पेट को अन्दर करने कि जुगाड़ करने लगा था। चिरकुट बाबु अपने आप को मुस्तैद दिखने कि कोशिश मे लगा था। विद्या कि अर्थी उठाने वाला विद्यार्थी इस कि संजीदगी ओढ़ने कि कोशिश मे लगा था कि जैसे अभी IAS का साक्षात्कार देने जा रह हो। एक बात इन सारे मर्दो मे बराबर थी वो ये कि सबो का दिल जोर से धड़क रहा था, और सब किसी तरह कनखियों से उस लाल छड़ी को निहार रहे थे।
- मुझे दो स्टैंड आगे उतरना है, कहकर उस लाल छड़ी ने कंडक्टर कि तरफ निगाहे उठाई, कंडक्टर गिरते गिरते बचा। वो लपक कर उस लाल शरारा के पास पहुंचना चाह रह था।
- " मुझे भी २ स्टैंड आगे जाना है। उस नकाबपोश औरत ने कहा। कंडक्टर ने उसकी बात को अनसुना करते हुए आगे कदम बढ़ा लिये। लाल पटाखा के पास पहुंच कर उसने कहा, " ३ कि टिकट लगेगी"। उस लडकी ने अपना पर्स टटोला, वो उसमे खुदरा पैसे खोज रही थी। हालांकि उसके पर्स मे क्या क्या है, ये उस लडकी से ज्यादा उन लोगो को ज्यादा जानना जरुरी था जो, दीदे फाड़ कर लडकी और उसके पर्स को घूरे जा रहे थे।
- कंडक्टर कि नजर उस लडकी के शर्ट पर थी जिसके ऊपर के दो बटन खुले थे और उनमे वो नजर आ रहा था जिसे छुपाने के लिये लडकी के वो कपड़ा पहना था ?
- लडकी को जल्द ही २ का सिक्का मिल गया। और कंडक्टर के अरमान मिटटी मे मिल गए। " मेरे पास बस यही है, या ५०० का छुट्टा कर दो।" कंडक्टर तो उस मधुबाला को मुफ़्त मे ही घर ले जाने के मूड मे था। लेकिन फिर खयालो से निकल्म कर उसने कहा, " टिकट तो ३ का है"।
- क्यो भाई क्या हो गया, मैडम के पास खुल्ले नही है तो क्या हुआ मुझसे ले लो । थुल थुल सेठ ने कहा।
- हां भाई, पैसे कम है तो क्या हुआ, जाने भी दो। विद्या कि अर्थी निकालने वाले उस लड़के ने कहा। लड़का मन ही मन सोच रहा था कि, साला मोटा ज्यादा ही नजदीकी दिखा रह है।
- अच्छा आप लोग कह रहे है तो कोई बात नही। लडकी ये सुनकर निश्चिंत हुई, और अपनी टांगो को एक के ऊपर एक चढा कर बैठ गई। उसके गोरे पैरो को देख कर सब मर्दो का दिल डोल गया।
- कंडक्टर उस नकाब वाली औरत के पास आया, "कहा जाना है"।
- टिकट ले लो"
-" दो स्टैंड आगे जाऊंगी।" औरत ने कहा।
- ३ का टिकट है।
- औरत ने नकाब के अन्दर से अपने " पल्लू " को निकाल कर एक गांठ खोली, उसमे से कुछ सिक्के निकाले , मेरे पास ढाई रूपये है।
- इतने से नही चलेगा, पुरे पैसे दो , वरना उतर जाओ। कंडक्टर ने रुखाई से कहा।
- देखिए मेरा बच्चा बीमार है, इससे पैदल नही चला जाएगा। और इस वक्त कोई दुसरी बस भी नही मिलेगी।
- नही , या तो पैसे दो या उतर जाओ।
- बस मे बैठे किसी मर्द (?) ने उस औरत कि आवाज पर ध्यान नही दिया। सब उस लाल पटाखा को घूरे जा रहे थे।
- आप लोग मेरी मदद कीजिये। --उस औरत ने कहा।
- पैसे नही है तो घूमने क्यो निकलती हो? "चिरकुट" बाबु ने कहा।
- कंडक्टर ने बस रुकवाई और उस औरत को धकियाते हुए निचे उतार दिया।
- कहा कहा से चले आते है। कंडक्टर ने कहा और एक निगाह लाल पटाखा के गदराये जिस्म पर डाल कर अपनी सीट पर धंस गया।
- मोटे सेठ ने उस नकाबपोश औरत को देखते हुए पान का एक बीड़ा मुँह मे डाला और कहा," ये सुधरने वाले नही है।"
- बस अब फिर अपनी रफ़्तार पकड़ चुकी थी। मंजिल ज्यादा दूर नही थी लेकिन एक नामुराद "लाल बत्ती " कि वजह से बस मे ब्रेक लगाना पड़ा। वो तो ड्राइवर बत्ती क्रॉस कर जाता, लेकिन एक सिपाही किनारे खड़ा था, इसलिये रुकना पड़ा।
- सिग्नल अभी लाल ही था इतने मे एक खुबसुरत बाला ने बस के फर्श पर अपना नाजुक कदम रखा। बस जोदार ढंग से हिली' लगा उस खुबसुरत बाला के कदमो ने भूचाल ला दिया। लेकिन सामने नजर डाली तो पता चला कि गौ माता सड़क पर विराजमान थी इसलिये ड्राइवर ने ब्रेक लगाया है।
- लेकिन उस लडकी के मिनी स्कर्ट और झिलमिले शर्ट मे कुछ नही, बल्कि बहुत कुछ ऐसा था जो देखने लायक था। बस मे जैसे ठण्डी हवा का झोंका आ गया था। कंडक्टर खड़ा हो कर मुस्तैद हो गया था। ड्राइवर बस को ऐसे चलाने लगा जैसे मक्खन पर छुरी चला रहा हो। मोटा सेठ साँस रोके अपने पेट को अन्दर करने कि जुगाड़ करने लगा था। चिरकुट बाबु अपने आप को मुस्तैद दिखने कि कोशिश मे लगा था। विद्या कि अर्थी उठाने वाला विद्यार्थी इस कि संजीदगी ओढ़ने कि कोशिश मे लगा था कि जैसे अभी IAS का साक्षात्कार देने जा रह हो। एक बात इन सारे मर्दो मे बराबर थी वो ये कि सबो का दिल जोर से धड़क रहा था, और सब किसी तरह कनखियों से उस लाल छड़ी को निहार रहे थे।
- मुझे दो स्टैंड आगे उतरना है, कहकर उस लाल छड़ी ने कंडक्टर कि तरफ निगाहे उठाई, कंडक्टर गिरते गिरते बचा। वो लपक कर उस लाल शरारा के पास पहुंचना चाह रह था।
- " मुझे भी २ स्टैंड आगे जाना है। उस नकाबपोश औरत ने कहा। कंडक्टर ने उसकी बात को अनसुना करते हुए आगे कदम बढ़ा लिये। लाल पटाखा के पास पहुंच कर उसने कहा, " ३ कि टिकट लगेगी"। उस लडकी ने अपना पर्स टटोला, वो उसमे खुदरा पैसे खोज रही थी। हालांकि उसके पर्स मे क्या क्या है, ये उस लडकी से ज्यादा उन लोगो को ज्यादा जानना जरुरी था जो, दीदे फाड़ कर लडकी और उसके पर्स को घूरे जा रहे थे।
- कंडक्टर कि नजर उस लडकी के शर्ट पर थी जिसके ऊपर के दो बटन खुले थे और उनमे वो नजर आ रहा था जिसे छुपाने के लिये लडकी के वो कपड़ा पहना था ?
- लडकी को जल्द ही २ का सिक्का मिल गया। और कंडक्टर के अरमान मिटटी मे मिल गए। " मेरे पास बस यही है, या ५०० का छुट्टा कर दो।" कंडक्टर तो उस मधुबाला को मुफ़्त मे ही घर ले जाने के मूड मे था। लेकिन फिर खयालो से निकल्म कर उसने कहा, " टिकट तो ३ का है"।
- क्यो भाई क्या हो गया, मैडम के पास खुल्ले नही है तो क्या हुआ मुझसे ले लो । थुल थुल सेठ ने कहा।
- हां भाई, पैसे कम है तो क्या हुआ, जाने भी दो। विद्या कि अर्थी निकालने वाले उस लड़के ने कहा। लड़का मन ही मन सोच रहा था कि, साला मोटा ज्यादा ही नजदीकी दिखा रह है।
- अच्छा आप लोग कह रहे है तो कोई बात नही। लडकी ये सुनकर निश्चिंत हुई, और अपनी टांगो को एक के ऊपर एक चढा कर बैठ गई। उसके गोरे पैरो को देख कर सब मर्दो का दिल डोल गया।
- कंडक्टर उस नकाब वाली औरत के पास आया, "कहा जाना है"।
- टिकट ले लो"
-" दो स्टैंड आगे जाऊंगी।" औरत ने कहा।
- ३ का टिकट है।
- औरत ने नकाब के अन्दर से अपने " पल्लू " को निकाल कर एक गांठ खोली, उसमे से कुछ सिक्के निकाले , मेरे पास ढाई रूपये है।
- इतने से नही चलेगा, पुरे पैसे दो , वरना उतर जाओ। कंडक्टर ने रुखाई से कहा।
- देखिए मेरा बच्चा बीमार है, इससे पैदल नही चला जाएगा। और इस वक्त कोई दुसरी बस भी नही मिलेगी।
- नही , या तो पैसे दो या उतर जाओ।
- बस मे बैठे किसी मर्द (?) ने उस औरत कि आवाज पर ध्यान नही दिया। सब उस लाल पटाखा को घूरे जा रहे थे।
- आप लोग मेरी मदद कीजिये। --उस औरत ने कहा।
- पैसे नही है तो घूमने क्यो निकलती हो? "चिरकुट" बाबु ने कहा।
- कंडक्टर ने बस रुकवाई और उस औरत को धकियाते हुए निचे उतार दिया।
- कहा कहा से चले आते है। कंडक्टर ने कहा और एक निगाह लाल पटाखा के गदराये जिस्म पर डाल कर अपनी सीट पर धंस गया।
- मोटे सेठ ने उस नकाबपोश औरत को देखते हुए पान का एक बीड़ा मुँह मे डाला और कहा," ये सुधरने वाले नही है।"
Monday, 9 July 2007
शनि देव
शनिवार को ऑफिस आते हुए , करीब करीब हर चौराहे पर डब्बे मे तुडे मुड़े टिन के एक ढांचे को रखे , जो कडुआ तेल ( mustard oil) मे डूबा रहता, छोटे बच्चे खडे मिलते है। ये बच्चे शनि देव के नाम पर भीख मांगते है। भीख मे पैसे मिलते होंगे तभी करीब २ साल से इन्हें देख रहा हू। हर बार बच्चो कि भीड़ ज्यादा नजर आती है। शायद दिल्ली वाले ज्यादा धार्मिक है, या वो अंधविश्वाशी है। कुछ ऐसा ही नजारा आपको भी देखने को मिला होगा। रेल से आते हुए आप को सामने कि दीवारो पर " बाबा भूरे बंगाली " बाबा असलम बंगाली " के विज्ञापन मिलेंगे। इनमे आपकी सारी समस्या के हल का दावा किया जाता है। इन सब चीजों को देख कर लगता है कि आर्थिक विकास कि दौड़ मे शामिल इस इलाके के लोगो ने अपनी जड़ता और अंध विश्वास को नही छोड़ा है। कही ना कही ये सब इस बात का प्रमाण है कि हम लोग विज्ञानं सिर्फ पढ़ते है , उसे समझते नही और ना ही उससे कोई सीख लेते है। धार्मिक होना निपट निजी मामला है, इसमे किसी को कोई शक नही होगा। लेकिन जब धर्म कि आड़ मे व्यापार होने लगे और इस व्यापार मे मठाधिश हिस्सा लेने लगे तो ये स्वस्थ समाज के लक्षण नही होते।
Friday, 6 July 2007
गोंड आदिवासी कला

गोंड जनजाति के कलाकार भले ही विदेशी भाषा नहीं जानते हो पर इनकी चित्रकला जर्मनी, इटली, फ्रांस और ब्रिटेन में पहुँच रही है और सराही जा रही है। जी हां, अब इन गोंड जनजाति को विदेशो मे पहचान मिल रही है।
- मिसाल के तौर पर, मध्य प्रदेश के मंडला जिले के सुनपुरी गाँव में जन्मी दुर्गाबाई की बनाई हुई तस्वीरें एक फ्रांसीसी किताब में छापी गई हैं जिसे अनुष्का रविशंकर और श्रीरीष राव ने लिखा है।
- अँगरेज़ी में बेगम रुकैया सख़ावत हुसैन के कहानी संग्रह 'सुल्तान ड्रीम' में भी दुर्गाबाई के चित्रों को देखा जा सकता है।
- अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चित एक अन्य गोंड कलाकार हैं भज्जू श्याम, भज्जू की तस्वीरों का एक संकलन 'द लंदन जंगलबुक′ के नाम से इटैलियन डच, फ्रेंच और अँगरेज़ी में प्रकाशित की जा चुकी है। इसकी अब तक तीस हज़ार से भी ज्यादा प्रतियां बेची जा चुकी हैं. इस किताब के लिए भज्जू को 'इंडिपेंडेंट पब्लिशर अवार्ड' भी मिल चुका है।
- कल तक मजदूरी कर किसी तरह जीवनयापन करने वाले ये गोंड अब अपने नैसर्गिक हुनर के जरिये कम से कम भूखे तो नही सो रहे है। हालांकि अभी आदिवासी क्षेत्रो मे इन्लोगो के जीवन मे अभी और विकास कि सम्भावना है। जरुरत है तो बस एक ईमानदार कोशिश कि, जिससे ये भोले लोग अपना भोलापन और सादगी बचा कर रख सके।
Thursday, 5 July 2007
कट्टरपंथ

इस्लामाबाद कि लाल मस्जिद वहा पढने वाले तलबा के खून से लाल हो रही है। पिछले दो दिनों से चल रहा संकट अभी तक बरकरार है। ये होना भी था। पकिस्तान सरकार या यु कहा जाये फ़ौज ने अपने फाएदे के लिये जिन लोगो को पला पोसा वो खुद उन्ही के लिये भस्मासुर बन गए है। जनरल जिया के वक्त से कठ मुल्ला लोगो को सर चढाने का नतीजा हालांकि कई बार खुद पकिस्तान को झेलना पड़ा है लेकिन इसबार जो हुआ वो अपने आप मे खास है।
- सरकार कि नाक के निचे लाल मस्जिद के लड़के गुंडागर्दी करते रहे लेकिन सरकार ने उन्हें रोकने कि बजाये परोक्ष रुप से उनका समर्थन किया। वो तो चाइना के ८ लोगो को हिरासत मे लेने के बाद इन गुंडों कि दादागिरी international level पर लोगो के नजर मे आयी। चूकि इसमे मे चीन शामिल हो गया था इस वजह से पाक सरकार को कारवाई करने पडी।
- अब जरा लाल मस्जिद के बारे मे -----
- लाल मस्जिद इस्लामाबाद के अमीर रिहायशी इलाक़े में स्थित है और पाकिस्तानी ख़ुफिया एजेंसी आईएसआई का मुख्यालय इससे कुछ ही क़दमों की दूरी पर है.
इस मस्जिद में पाकिस्तान की बड़ी-बड़ी हस्तियों की आमद रहती है जिनमें शीर्ष नौकरशाहों के अलावा आईएसआई के आला अधिकारी भी शामिल हैं। इस समय मस्जिद के सरपरस्त अब्दुल अज़ीज़ और अब्दुल राशिद नाम के दो भाई हैं.
दक्षिण पंजाब प्रांत से नाता रखने वाले इन दोनों भाइयों से पहले मस्जिद का संचालन उनके पिता मौलाना अब्दुल्ला करते थे।
इस मस्जिद में पाकिस्तान की बड़ी-बड़ी हस्तियों की आमद रहती है जिनमें शीर्ष नौकरशाहों के अलावा आईएसआई के आला अधिकारी भी शामिल हैं। इस समय मस्जिद के सरपरस्त अब्दुल अज़ीज़ और अब्दुल राशिद नाम के दो भाई हैं.
दक्षिण पंजाब प्रांत से नाता रखने वाले इन दोनों भाइयों से पहले मस्जिद का संचालन उनके पिता मौलाना अब्दुल्ला करते थे।
Monday, 2 July 2007
बंगाल कि जादुगरनी

बचपन मे सुना था कि बंगाल कि जादुगरनिया आदमी को जानवर बना क़ैद कर लेती है। लोक कवि भिखारी ठाकुर ने भी अपने गीतो मे पूर्वांचल कि उन औरतो के दर्द को उकेरा है जिनमे उनके पति उस समय बंगाल कमाने जाते थे और फिर लंबे समय तक वापस नही आते थे। भिखारी ठाकुर के गीतो मे विरह वेदना मे तड़पती उन औरतो का दर्द है, जो गीतो के माध्यम से बंगाली जादुगार्नियो पर उनके शौहरो को बरगलाने का जिम्मेदार मानती थी। उस वक्त तो ये सुनी सुनायी बाते थी। लेकिन अब तो एक सचमुच कि जादूगरनी आ गई है।
- पीसी सरकार (जूनियर) की 27 साल वर्षीय बेटी मानेका सरकार हाल में कोलकाता के स्टार थिएटर में आयोजित अपने पहले एकल शो के बाद देश की पहली पेशेवर महिला जादूगर बन गईं। आठ पीढ़ियों तक पुरुष ही इस खानदानी विरासत को आगे बढ़ाते रहे। लेकिन अब सरकार खानदान की नौवीं पीढ़ी की संतान मानेका ने इस जादुई विरासत को आगे बढ़ाने का संकल्प लिया है।
- जादूगर P C सरकार हिंदुस्तान के जाने माने अय्येयार है। इनके पूर्वज बादशाह "जहाँगीर " के दरबार मे अपने फन का मुजाहेरा करते थे। बादशाह ने खुश होकर उस समय उन्हें "ढाका " के पास एक जमींदारी दी थी। तब से पुरा खानदान जादूगरी को ही पेशा बना कर अपने फन से लोगो का मनोरंजन कर रहा था। अब इस नौवी पीढी मे सिर्फ लडकिया थी, और ये आशंका जतायी जा रही थी कि क्या अब इस कला को आगे बढ़ाने वाला कोई नही होगा। जादूगर पी सी सरकार ने इन सब आशंकाओ को गलत साबित करते हुए अपनी विरासत अपनी बेटी को सौप दी। उम्मीद करनी चाहिए कि ये महिला जादूगर अपनी विरासत को बेहतरीन ढंग से आगे बढ़ाते हुए नए कीर्तिमान बनाएगी।
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