Tuesday, 10 July 2007

ये सुधरने वाले नही है।

बस पूरी रफ़्तार से भागी जा रही थी। जून कि गर्म दोपहर मे बस का ड्राइवर जल्दी से जल्दी डिपो पहुचना चाह रहा था। बहुत से बस स्टैंड को उसने बिना रुके पार कर लिया। हालांकि वो यहाँ भी नही रुका लेकिन हॉस्पिटल होने कि वजह से यहाँ भीड़ थी, और ना चाहते हुए भी उसे बस कि रफ़्तार धीमी करनी पडी। नकाब ओढ़े एक औरत बस मे चढ़ी। उसके हाथ मे एक बच्चा था, जो सोया था या बेहोश था कहा नही जा सकता। धीमे कदमो से आगे बढते हुए उस औरत ने एक सीट पर अपना गन्दा सा झोला रखा और बगल वाली सीट पर बैठ गई। बस का कंडक्टर किसी जल्दीबाजी मे नही था। उसने एक हल्की से नजर उस औरत पर डाली और अपने सीट पर धंसा रहा। बस मे उस औरत को मिला कर ६ जने थे। ड्राइवर और कंडक्टर, वो औरत, एक थुलथुल सेठ, किसी सरकारी ऑफिस का नाकारा बाबु, और FM सुनता एक विद्यार्थी।
- बस अब फिर अपनी रफ़्तार पकड़ चुकी थी। मंजिल ज्यादा दूर नही थी लेकिन एक नामुराद "लाल बत्ती " कि वजह से बस मे ब्रेक लगाना पड़ा। वो तो ड्राइवर बत्ती क्रॉस कर जाता, लेकिन एक सिपाही किनारे खड़ा था, इसलिये रुकना पड़ा।
- सिग्नल अभी लाल ही था इतने मे एक खुबसुरत बाला ने बस के फर्श पर अपना नाजुक कदम रखा। बस जोदार ढंग से हिली' लगा उस खुबसुरत बाला के कदमो ने भूचाल ला दिया। लेकिन सामने नजर डाली तो पता चला कि गौ माता सड़क पर विराजमान थी इसलिये ड्राइवर ने ब्रेक लगाया है।
- लेकिन उस लडकी के मिनी स्कर्ट और झिलमिले शर्ट मे कुछ नही, बल्कि बहुत कुछ ऐसा था जो देखने लायक था। बस मे जैसे ठण्डी हवा का झोंका आ गया था। कंडक्टर खड़ा हो कर मुस्तैद हो गया था। ड्राइवर बस को ऐसे चलाने लगा जैसे मक्खन पर छुरी चला रहा हो। मोटा सेठ साँस रोके अपने पेट को अन्दर करने कि जुगाड़ करने लगा था। चिरकुट बाबु अपने आप को मुस्तैद दिखने कि कोशिश मे लगा था। विद्या कि अर्थी उठाने वाला विद्यार्थी इस कि संजीदगी ओढ़ने कि कोशिश मे लगा था कि जैसे अभी IAS का साक्षात्कार देने जा रह हो। एक बात इन सारे मर्दो मे बराबर थी वो ये कि सबो का दिल जोर से धड़क रहा था, और सब किसी तरह कनखियों से उस लाल छड़ी को निहार रहे थे।
- मुझे दो स्टैंड आगे उतरना है, कहकर उस लाल छड़ी ने कंडक्टर कि तरफ निगाहे उठाई, कंडक्टर गिरते गिरते बचा। वो लपक कर उस लाल शरारा के पास पहुंचना चाह रह था।
- " मुझे भी २ स्टैंड आगे जाना है। उस नकाबपोश औरत ने कहा। कंडक्टर ने उसकी बात को अनसुना करते हुए आगे कदम बढ़ा लिये। लाल पटाखा के पास पहुंच कर उसने कहा, " ३ कि टिकट लगेगी"। उस लडकी ने अपना पर्स टटोला, वो उसमे खुदरा पैसे खोज रही थी। हालांकि उसके पर्स मे क्या क्या है, ये उस लडकी से ज्यादा उन लोगो को ज्यादा जानना जरुरी था जो, दीदे फाड़ कर लडकी और उसके पर्स को घूरे जा रहे थे।
- कंडक्टर कि नजर उस लडकी के शर्ट पर थी जिसके ऊपर के दो बटन खुले थे और उनमे वो नजर आ रहा था जिसे छुपाने के लिये लडकी के वो कपड़ा पहना था ?
- लडकी को जल्द ही २ का सिक्का मिल गया। और कंडक्टर के अरमान मिटटी मे मिल गए। " मेरे पास बस यही है, या ५०० का छुट्टा कर दो।" कंडक्टर तो उस मधुबाला को मुफ़्त मे ही घर ले जाने के मूड मे था। लेकिन फिर खयालो से निकल्म कर उसने कहा, " टिकट तो ३ का है"।
- क्यो भाई क्या हो गया, मैडम के पास खुल्ले नही है तो क्या हुआ मुझसे ले लो । थुल थुल सेठ ने कहा।
- हां भाई, पैसे कम है तो क्या हुआ, जाने भी दो। विद्या कि अर्थी निकालने वाले उस लड़के ने कहा। लड़का मन ही मन सोच रहा था कि, साला मोटा ज्यादा ही नजदीकी दिखा रह है।
- अच्छा आप लोग कह रहे है तो कोई बात नही। लडकी ये सुनकर निश्चिंत हुई, और अपनी टांगो को एक के ऊपर एक चढा कर बैठ गई। उसके गोरे पैरो को देख कर सब मर्दो का दिल डोल गया।
- कंडक्टर उस नकाब वाली औरत के पास आया, "कहा जाना है"।
- टिकट ले लो"
-" दो स्टैंड आगे जाऊंगी।" औरत ने कहा।
- ३ का टिकट है।
- औरत ने नकाब के अन्दर से अपने " पल्लू " को निकाल कर एक गांठ खोली, उसमे से कुछ सिक्के निकाले , मेरे पास ढाई रूपये है।
- इतने से नही चलेगा, पुरे पैसे दो , वरना उतर जाओ। कंडक्टर ने रुखाई से कहा।
- देखिए मेरा बच्चा बीमार है, इससे पैदल नही चला जाएगा। और इस वक्त कोई दुसरी बस भी नही मिलेगी।
- नही , या तो पैसे दो या उतर जाओ।
- बस मे बैठे किसी मर्द (?) ने उस औरत कि आवाज पर ध्यान नही दिया। सब उस लाल पटाखा को घूरे जा रहे थे।
- आप लोग मेरी मदद कीजिये। --उस औरत ने कहा।
- पैसे नही है तो घूमने क्यो निकलती हो? "चिरकुट" बाबु ने कहा।
- कंडक्टर ने बस रुकवाई और उस औरत को धकियाते हुए निचे उतार दिया।
- कहा कहा से चले आते है। कंडक्टर ने कहा और एक निगाह लाल पटाखा के गदराये जिस्म पर डाल कर अपनी सीट पर धंस गया।
- मोटे सेठ ने उस नकाबपोश औरत को देखते हुए पान का एक बीड़ा मुँह मे डाला और कहा," ये सुधरने वाले नही है।"

3 comments:

Anonymous said...

कहानी कहाँ भई, मैंने कॉलेज के टैम में ऐसा असलियत में होते देखा है। :(

mamta said...

ये सब पहले भी होता था और आज भी होता है और कल भी यही होगा। क्यूंकि इन्सान की फितरत ही ऐसी है।

Anonymous said...

har mard ek mahila ko ek ensaan ke roop me nahi balki ek deh ke roop me dekhta hai.....

hamara samaj stri ko kewal bhogeni ki vastu samjta hai....