Thursday, 6 September 2007

जय थानेश्वर

लाल टोपी वाले जनता के सामने तो अकड़ के रहते है लेकिन भगवान् के आगे दंडवत होना उनकी मज़बूरी है। हो भी क्यो ना, आख़िर स्वर्ग किसे नही चाहिऐ। दिन भर नेताओ, गुंडों, ठेकेदारों और अपने आला अफसरों कि नाजायज खवाहिशो को पुरा करते और जनता कि पुकार को अनसुना कर अपनी जेब भरते मासूम पुलिस वाले आख़िर भगवान् कि शरण मे न जाये तो कहा जाये।
- बुधवार को सुबह NDTV पर आ रहे विशेष मे थानों और दफ्तरों मे इश्वर के रहने पर सवाल उठाया गया। कहा जाता है कि ईश्वर सर्वव्यापी है। अब हर जगह है तो थानों और दफ्तरों मे रहने से लोगो को क्यो तकलीफ हो रही है। इसी प्रोग्राम मे रविश कुमार ने "Newsroom" से टिपण्णी कि, की थानों और दफ्तरों मे भगवान् का राजनितिक, आर्थिक और सामाजिक पहलू है। दफ्तरों मे आने वाले "नजराने" को भगवान् पर चढा कर उसे काले से सफेद करने का इससे अच्छा तरीका और क्या हो सकता है। इसके अलावा हर मंदिर पर एक आदमी का रोजगार फिट हो जाता है। जाहिर है मंदिर होगा तो, भक्त आएंगे, भक्त आएंगे तो प्रसाद और धुप बिकेगी, मिला ना दर्जनों को रोजगार। इन मंदिरों का सबसे बड़ा फायेदा राजनितिक है। 1990 के बाद जब "राम लीला मंडळी" ने (इसे भाजपा पढे) "जय राम जी कि" को "जय श्री राम" मे बदल डाला था प्रशासन का "सम्प्रदायिकरण" शुरू हो गया था। मुद्दों कि जगह "राम नाम" को वोट मांगने कि वजह बनाने के बाद थानों और दफ्तरों मे मंदिर बनाने का सिलसिला तेज हो गया।
- यु भी जिस देश मे स्कूलों कि संख्या 2 लाख और मंदिरों कि संख्या 6 लाख हो वहा धार्मिक स्थानो कि थोड़ी और बढ़ जाये तो फर्क नही पड़ता। बहुत दिन हुए जब "जनसत्ता" मे मे "सुभाष गताडे" का एक लेख आया था इसमे सुभाष जी ने जबलपुर और मदुरई का उदाहरण देकर ये समझाया था कि कैसे आम जनता और नगर प्रशासन के तालमेल के बाद दोनो शहरो मे सैकडो अवैध मंदिरों, दरगाहों और पूजा स्थलों को तोड़ा गया था। सारे हिंदुस्तान मे प्रयास तो ऐसे ही होने चाहिऐ, और हो भी रहे है।
- दुसरी जगह का तो कह नही सकता लेकिन मेरे शहर "मुज़फ़्फ़रपुर" का एक वाकया आपके पेशे नजर है। "सादपुरा" जहा मेरा घर है, से "जिला स्कूल" जाते हुए "MDDM" कालेज के सामने एक पीपल का पेड हुआ करता था। 1995 तक वहा दो एक गोल पत्थरों के सिवा और कुछ नही था, एकाएक एक त्यौहार आया, मंदिर के नाम पर कारसेवा हुई और आज वहा सड़क को संकरा किये हुए एक भव्य पूजा स्थल है। अब ऐसे मे सुधार कि क्या गुंजाईश है, आप ही बताये?

2 comments:

Anonymous said...

कामरान भाई आप किसी भी पेड़ के सामने रोज कुछ देर खड़े हो जाये और कोई पूछे तो बस इतना कह दे की इस पेड़ जो कुछ मांगों वह मिलता है। तो मैं इस बात की गारण्टी दे सकता हूं कि आने वाले कुछ दिनों में ही वहां पूजा शुरू हो जाएगी और देखते-देखते वहां मंदिर बनने में देर नहीं लगेगा।

वैसे भी जब मैं देखता हूं कि किसी सड़क के बीचो बीच कोई मंदिर या दरगाह हैं तो लोग उसके खिलाफ कोई बात सुनना पसंद नहीं करते चाहे रोज ही उन्हें इसकी वजह से कितने समय ही जाम में फंसना क्यों न पड़े। राजधानी दिल्ली में जब झण्डेवालान से करोलबाग तकं मेट्रो की लाईन बन रही थी तो बीच में एक विशालकाय हनुमान जी आ गये तो मेट्रो ने उन्हें हटाने के लिए कई प्रयास किए लेकिन वह टस से मस नहीं हुए अंतत: मेट्रो को अपनी लाईन ही टेढ़ी करनी पड़ी जो आज भी देखी जा सकती है। इस जगह पर मेट्रो कभी भी दुर्घटनाग्रस्त तक हो सकती है।

सुनीता शानू said...

बिलकुल सही बात है कब किस दिशा से और किस रूप में भगवान निकल आयें कुछ नही कह सकतें...जहाँ चार पुष्प चढ़ाये और बस वही धीरे-धीरे करके एक मन्दिर बन जाता है और एक दिन एक पडिंत भी सपरिवार आकर रहने लगता है...

सुनीता(शानू)