Sunday, 5 August 2007

अनुदान का खेल

पटना मे जॉब करते हुए मुझे एक बन्दे से मिलने का मौका मिला। जनाब कहने को तो एक NGO चलाते थे, लेकिन उनका असल धंधा अनुदान हासिल कर उसकी मलाई खाना था। खैर ऐसे बन्दे बहुत से है जिनके बारे मे बाद मे बात होगी। अभी अनुदान से सम्बंधित एक बात।
- हमारे देश मे अनुदान हासिल करने के कुछ नियम काएदे बने है। विदेशी अनुदान किस व्यक्ति या संस्था को लेने कि इजाजत होगी, इसके लिए 1976 का "विदेशी अनुदान (नियमन ) कानून" मौजूद है। इसी कानून के तहत " centre for equity studis" नाम कि एक संस्था ने कुछ साल पहले विदेशी अनुदान के लिये आवेदन दिया था। लेकिन इस संस्था के आवेदन को ये कह कर खारिज कर दिया गया कि " यह संगठन राजनितिक गतिविधियों मे संलिप्त है।" आपकी जानकारी के लिये ये बता दे कि इस संस्था के निदेशक "हर्ष मंदर " साहब है। दुबारा आवेदन करने और काफी इंतजार करने के बाद जब "मंदर साहब" ने सरकार से ये जानना चाहा कि राजनितिक गतिविधियों का क्या मतलब है तो, कहा गया कि " उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा के कारणों कि वजह से ये नही बताया जा सकता। "
- 2004 मे ऊपर लिया गया फैसला 1976 के "विदेशी अनुदान (नियमन ) कानून" के तहत लिया गया था। 2006 मे तथाकथित धर्म निरपेक्ष सरकार ने इस कानून मे संशोधन किया।
- किसी भी राज्य के लिए अपने कानून बनाना उसका अधिकार है। लेकिन समाज को इस कानून बनने कि प्रक्रिया कि सतत निगरानी करनी चाहिए। ये इसलिये जरूरी है कि प्रायः आधुनिक राष्ट्र - राज्य खुद को अपने ही नागरिको के विरूद्व सुरक्षित करने के लिए उपाय करते हुए पाये गय है। "विदेशी अनुदान (नियमन ) कानून" मे परिवर्तन कि वजह राष्ट्रीय सुरक्षा का रहा है।
- राष्ट्रीय हित, आतंरिक सुरक्षा और राजनितिक प्रकृति के संगठन --ये वो कारण है जिनकी वजह से सरकार ये सुनिश्चित करना चाहती है कि विदेशी अनुदान का इस्तेमाल सिर्फ " सार्थक कार्यो " के लिये किया जाए। कौन से काम सार्थक है इस काम के लिये सरकार ने जिलाधिकारी तय कर रखे है। इसके साथ सरकार ही ये निर्णय करेगी कि कौन सा संगठन " राजनितिक प्रकृति " का है और इसलिये विदेशी अनुदान का पात्र नही है।
- --------शिक्षा हो या जन स्वास्थ, लोगो के भोजन का हक हो या सुचना का अधिकार, रोजगार का अधिकार हो या औरतो का अधिकार --इन सारे मुद्दों को किसी ना किसी रुप मे राजनितिक मुद्दा कहा जा सकता है। जल, जंगल और जमीन या रोजगार के हक का मुद्दा तो राजनैतिक है ही। केरल मे कोक के खिलाफ आंदोलन हो या तमिलनाडु मे समंदर किनारे पर्यटन स्थल बनाने के खिलाफ मछुआरों का संघर्ष, जंगल से बाहर किये जाने के खिलाफ आदिवासियो का आंदोलन हो, उड़ीसा, मुम्बई, बंगाल या छत्तीसगढ़, झारखण्ड मे विदेशी कम्पनियों या देशी पूंजी के लिये जमीन अधिग्रहण के खिलाफ अभियान --इनमे से कौन राजनितिक है और कौन सामाजिक?
- साम्प्रदायिकता के खिलाफ जनता को शिक्षित करना तो सही मे राजनितिक काम ही है। नए "विदेशी अनुदान (नियमन ) कानून" मे ऐसी गतिविधि को विदेशी अनुदान के लिए अनुचित माना गया है, जो समुदायों के बीच विभेद और वैमनस्य को बढावा देती हो। लेकिन हमे यह पता है कि रामजन्म भूमि आंदोलन से लेकर गुजरात के क़त्ल- ओ - गारत तक या उसके बाद गुजरात, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक, केरल, आदि मे ईसाईयों, मुसलमानो के खिलाफ निरंतर अभियान मे शामिल RSS , विश्व हिंदु परिषद या बजरंग दल को अभी तक राज्य कि तरफ से वैमन्स्यकारी गतिविधि का दोषी नही बताया गया है, जबकि वर्त्तमान सरकार M F hussain कि कलाकृति कि जांच करने के बाद इस नतीजे पर पहुंची है कि वे समुदायों के बीच नफरत पैदा कर सकती है, और उन पर करवाई कि जा सकती है। अगर हुसैन कोई विदेशी अनुदान लेना चाहे तो उन्हें रोका जा सकता है।
- विनायक सेन का मामला हो या सरोज मोंहंती कि गिरफ़्तारी का मुद्दा- अगर आप इनके समर्थन मे आवाज उठाते है तो आप कि गतिविधि को राजनितिक मानने का वाजिब कारण सरकार के पास है, और आप को विदेशी अनुदान नही मिलेगा।
- जिस देश मे सर्वोच्च ख़ुफ़िया संस्था RSS को सैनिक Training देने कि तैयारी कर सकती है। वहा कौन सी 'राजनीती' देशहित मे है और कौन सी देश विरोधी ? किसकी राजनीती को निष्प्रभावी करने कि कोशिश "विदेशी अनुदान (नियमन) कानून- २००६" का प्रस्ताव कर रहा है?

साभार ,
अपूर्वानंद जी

5 comments:

apoorvanand said...

is tippani ko jagah dene ke liye hukriya.aapko yah zaroor bat dena chahiye tha ki yah jansatta ke mere niyamit stamhba VILAMBIT mein cchapee tippani ka sampadit roop hai- yaani apke dwara sampadit.i sroop mein ie diye jaane par is tippani ka mool matavay kuch ashpshta sa rah jaat ahi. umeed hai aap meri baat ko sahi dhanga se lenge.
apoorvanand

Sanjeet Tripathi said...

कामरान जी, छत्तीसगढ़ आपकी बीट है, सो इस पोस्ट पर एक नज़र ज़रुर मार लें

दोस्ती के दिन आइए पढ़ें दोस्ती पर छत्तीसगढ़ की एक परंपरा

Sanjeet Tripathi said...

http://sanjeettripathi.blogspot.com/2007/08/blog-post.html/>

श्रद्धा जैन said...

anudaan par aapke vichar padhe aur main aapse puri tarah sahmat hoon ki aaj kal is tarike se logon ne

श्रद्धा जैन said...

kashma kijiye meri baat aadhi hi post ho gayi thi .

apna vayvassay bana liya hai magar aapke vichar se aapne madhyam se aur bhi bhaut kuch jaanne ka avsar mila

dhanyawaad ye padhne ka avsar dene ke liye