" चालकों को निर्देश दिया जाता है कि गेयर बदलने के लिये कलच का प्रयोग करे। गाडी बंद करने के बाद चाभी निकाल ले। " ये वाक्य करीब करीब हर डीटीसी बस मे चालक के नजदीक लिखी रहती है। बावजूद इसके मैंने कभी चालकों को कलच का प्रयोग करते हुए नही देखा। कल बस से सफ़र के दौरान चालक कि इस "तेजी" पर ध्यान गया। बिना कलच दबाये वो ऐसे गेयर बदल रहा था , जैसे गोवा मे सरकार बदलती है। शायद यही ग़ैर जिम्मेदाराना रवैया है कि बहुत कम वक्त मे DTC कि बसें खटारा हो जाती है। चालक, बसो को सरकारी सम्पति मान कर ऐसे ही रगड़ते रहते है। यही सब वजहे है कि दिल्ली परिवहन को हर दिन करोडो का घाटा होता है।
- निजी बस मालिक साल दो साल मे अपनी बसो को २ से ४ कर लेते है वही, सरकारी परिवहन व्यवस्था हमेशा घाटे का सौदा साबित होती है।
Monday, 30 July 2007
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3 comments:
सभी सरकारी संपत्तियों का ऐसा ही दुरुपयोग हो रहा है: चाहे वो बसें हो या बौद्धिक संपदा. अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण.
सरकारी संपत्ति तो ससुराल की तरह होती है…बस बैठे रहो और खाते जाओ।
आप बिल्कुल सही कह रहे हैं।बस ही नही, हर जगह यही हाल है।तभी तो देश रसातल में जा रहा है।
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