सुबह के दस बज रहे होंगे , हम सब लोग अपने अपने कंप्युटर पर स्टोरी एडिट कर रहे थे। केबिन मे लगा टीवी, न्यूज़ सुना रह था। लोग सुन रहे थे कि नही, ये और बात है। टीवी पर न्यूज़ बोल रही सुंदर बाला खास खबरे पढ़ रही थी। खबर ... आज भी प्रदेश मे ऐसे लोग है जो चूहे खाते है। ये खबर सुन कर मेरे साथ काम करने वाली दोस्त(शायद अब ना रहे ) ने कहा, आज भी लोग चूहे खाते है। उसके बोलने और चेहरे पर आने वाला भाव कुछ इस तरह का था कि उसने ये बात पहली बार सूनी हो। दिल्ली मे पली और पढी ये लडकी शायद असलियत से अनजान है। बिहार मे एक ऐसा तबका है जिसका नाम ही मुसहर है। ये लोग सदियों से खेतो मे चूहे के बिलो मे से चावल निकाल कर खाते है और इसके साथ अगर चूहा और कोई सब्जी हो तो वह दिन इन लोगो के लिये दिवाली से कम नही होता। ये इन लोगो कि किस्मत कहा जाये या विकास कि उलटी दिशा मे होना, आजादी के ६० साल बाद भी ये लोग चूहे खाने को अभिशप्त है।
...ये सच्चाई है उस नई जमात के पत्रकारो कि जो सिर्फ पत्रकारिता कि चकाचौंध को देख कर आ तो गए है, लेकिन उन्हें सच्चाई से दूर दूर तक वास्ता नही है। अभी कुछ दिन ही हुए है जब 'जनसत्ता' मे ' दुनिया मेरे आगे' मे एक पत्रकार का अनुभव आया था जिसमे उन्होंने अपनी बस यात्रा का वर्णन किया था। इस लेख मे लेखक ने पत्रकारिता कर रहे एक लड़के से पुछा कि' विनोद दुआ और प्रभाष जोशी कौन है जानते हो', तो उस महाशय का उत्तर था' नही'। और जब उन्होने पुछा कि, आप को क्या बनना है, मसलन , खेल पत्रकार, फिल्म पत्रकार या कुछ और। उस लड़के ने जवाब दिया कि, उसे न्यूज़ रीडर बनना है। .....ये है वो असलियत जो आज कल के नए पत्रकारो कि सोच बयां करता है। इस लिये बचे रहीये इन चिन चिन चु से।
...ये सच्चाई है उस नई जमात के पत्रकारो कि जो सिर्फ पत्रकारिता कि चकाचौंध को देख कर आ तो गए है, लेकिन उन्हें सच्चाई से दूर दूर तक वास्ता नही है। अभी कुछ दिन ही हुए है जब 'जनसत्ता' मे ' दुनिया मेरे आगे' मे एक पत्रकार का अनुभव आया था जिसमे उन्होंने अपनी बस यात्रा का वर्णन किया था। इस लेख मे लेखक ने पत्रकारिता कर रहे एक लड़के से पुछा कि' विनोद दुआ और प्रभाष जोशी कौन है जानते हो', तो उस महाशय का उत्तर था' नही'। और जब उन्होने पुछा कि, आप को क्या बनना है, मसलन , खेल पत्रकार, फिल्म पत्रकार या कुछ और। उस लड़के ने जवाब दिया कि, उसे न्यूज़ रीडर बनना है। .....ये है वो असलियत जो आज कल के नए पत्रकारो कि सोच बयां करता है। इस लिये बचे रहीये इन चिन चिन चु से।
2 comments:
Samajik Tanebane buna aapka lekh samaj ki dogli taswir pesh karta hai..
Keep it on..
yaha log dohri zindagi ji rahe hai..
Ek tho dikhane ke liye aur ek apne niji vicharo ke liye...samaj ki ish dohri mansikta par koi mai ka lal ungli nahi uthata hai..
aapki pehal kabile tarif hai..
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