Sunday, 27 May 2007

नैतिकता और मानसिकता

शायद फिल्म " खलनायक " का गाना ' चोली के पिछे क्या है' आप ने सुना होगा '। फिल्म ख़्वाहिश में सत्रह चुंबन होने को भी बहुत चटख़ारे लेकर लोगो ने देखा। 'मर्डर' फिल्म ने कितनों का मर्डर किया, बताया नही जा सकता। ये सब कुछ फिल्मो मे हो तो सही ? है। राह चलते अगर आप ने किसी को ऐसा कुछ करते देख लिया तो , तो जुबान से ये निकलते देर नही लगेगी कि " कितने बेशर्म है। " हालांकि जानकारो का कहना है कि फिल्मे हिंदुस्तान का सामाजिक आइना है। तब फिर हल्ला क्यो। यानी समाज मे भी ऐसा कुछ हो रहा है।

कुछ समय पहले तक भारतीय फ़िल्मों में चुंबन की जगह दो फूलों का टकराना या दो चिड़ियों का चोंच लड़ाना ही दिखाया जाता था।हाँ फूहड़ बोलों, कूल्हे मटकाने और अश्लील द्विअर्थी संवादों पर कोई रोक नही थी। सेक्स के बारे में भारतीय मध्यम वर्ग के विचारों में भी इसी तरह के अंतर्विरोध नज़र आते हैं.

" समलैंगिकता, विवाह पूर्व और विवाहेतर संबंध आम बात हैं लेकिन आधुनिक भारतीय पुरूष अभी भी मानता है कि वो शादी एक वर्जिन यानी कुँआरी कन्या से ही करेगा।" विवाह पूर्व यौन संबंधों को जायज़ ठहराने के लिए नैतिक मूल्यों का सहारा लिया जाता है और कहा जाता है कि अगर कमिटमेंट है तो इसमे कोई बुराई नही। हालांकि ये सिर्फ कहने कि बात है। इसमे भी मर्दो को ही अधिकार है कि वो दुसरी या तीसरी औरत से संबंध बनाए । अगर कही किसी औरत से ऐसा कुछ हुआ तो फिर उसकी खैर नही। आम तौर पर लड़के, लड़कियों (माल ) को परेशान करना अपना जनम सिद्ध अधिकार समझते है। ग्रुप मे जो ये ना करे वो " बीच का" । लेकिन अगर कोई आप कि बहन के साथ वही करे तो आप मारा मरी कर लेंगे।

मध्यम वर्ग मे स्त्री-पुरूष संबंध अभी भी पुरूषवाद के दुर्ग हैं।मियाँ और बीवी अगर साथ-साथ दफ़्तर से वापस घर लौटते हैं तो मियाँ मेज़ पर पैर फैलाकर अख़बार पढ़ता है और बीवी से उम्मीद रखता है कि वो फेंटा कसकर रसोई मे जाए और उसके लिए चाय बनाए.
-हमारे यहाँ अभी भी ज़्यादातर मध्यमवर्गी लड़के लड़कियाँ तयशुदा शादियाँ करते हैं।लड़कों से पूछा जाए तो वो कहेंगे कि फ़्लर्ट करने के लिए ऐसी-वैसी लड़कियाँ ठीक हैं लेकिन हम शादी ऐसी लड़की से करेंगे जो घर-गृहस्थी चलाए, माँ बाप की सेवा करे और वफ़ादार रहे.सेक्स के प्रति लोगों के नज़रिए मे पहले की तुलना मे लचीलापन आया है लेकिन खुलेआम अपनी सेक्सुएलिटी पर चर्चा करने मे वो अभी भी शर्माता है.
-हालांकि सच ये है कि , लोग खुलेआम मानने को तैयार हैं कि यहाँ अमरीका की तरह किसिंग न होती हो लेकिन हाथ-वाथ वो चैन से फेर ही लेते हैं अपनी पसंदीदा दोस्त पर." और तो और लड़कियों मे भी कुछ इसी तरह का "खुलापन " आया है। कोई भी लडकी आज " पोपट लाल या चम्पक लाल " जैसा लड़का नही चाहती।

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