
'धरम ग्रंथ सब जला चुकी है, जिसके भीतर कि ज्वाला,
मंदिर, मस्जिद, गिरजे सबकुछ तोड़ चूका जो मतवाला,
पंडित, मोमिन, पादरियो के फंदो को जो काट चूका,
कर सकती है, आज उसी का स्वागत मेरी मधुशाला'।
-----ये मधुशाला हरिवंश राए बच्चन कि है। पर उत्तर प्रदेश मे मायावती को मिली जीत कुछ ऎसी ही है। सारे जात पात को किनारे रख कर मायावती को मिला समर्थन सोशल इंजीनियरिंग कि एक मिसाल है। सब से ज्यादा उँची जात वालो कि आबादी वाले राज्य मे एक दलित का सर्वोच्च पद प्राप्त करना यह दिखाता है कि समाज के निचले स्तर पर परिवर्तन हो रहे है। हंस का दलित अंक जिन्होंने पढा होगा, या प्रेमचंद के लेख और उपन्यास पढे होंगे वो सब इस बात से अनजान नही होंगे कि दलितो कि आज से ६०-७० साल पहले क्या हालत होगी। अभी कुछ दिन पहले ndtv पर ये खबर आयी थी कि नागपुर मे एक दलित को घोड़ी पर नही चढ़ने दिया गया। फिर उस दलित ने अपने संवैधानिक अधिकारो का इस्तेमाल किया और पुलिस कि निगरानी मे दुल्हन को लाने घोड़ी पर गया। up मे भी दलितो ने जब पुरी पुलिस सुरक्षा मे वोटिंग कि तो नतीजा हमारे सामने है। इसके अलावा ब्राह्मणों ने दलित नेतृत्व मे जो आस्था दिखाई है वो भी अजूबा है। मनुवाद से मायावाद तक का जो रास्ता ब्राह्मणों ने अवध मे नापा है यो सारे हिंदुस्तान मे भी दिखाई देगा? कम से कम मै तो यही चाहता हु। शायद आप भी यही चाहते हो।
मंदिर, मस्जिद, गिरजे सबकुछ तोड़ चूका जो मतवाला,
पंडित, मोमिन, पादरियो के फंदो को जो काट चूका,
कर सकती है, आज उसी का स्वागत मेरी मधुशाला'।
-----ये मधुशाला हरिवंश राए बच्चन कि है। पर उत्तर प्रदेश मे मायावती को मिली जीत कुछ ऎसी ही है। सारे जात पात को किनारे रख कर मायावती को मिला समर्थन सोशल इंजीनियरिंग कि एक मिसाल है। सब से ज्यादा उँची जात वालो कि आबादी वाले राज्य मे एक दलित का सर्वोच्च पद प्राप्त करना यह दिखाता है कि समाज के निचले स्तर पर परिवर्तन हो रहे है। हंस का दलित अंक जिन्होंने पढा होगा, या प्रेमचंद के लेख और उपन्यास पढे होंगे वो सब इस बात से अनजान नही होंगे कि दलितो कि आज से ६०-७० साल पहले क्या हालत होगी। अभी कुछ दिन पहले ndtv पर ये खबर आयी थी कि नागपुर मे एक दलित को घोड़ी पर नही चढ़ने दिया गया। फिर उस दलित ने अपने संवैधानिक अधिकारो का इस्तेमाल किया और पुलिस कि निगरानी मे दुल्हन को लाने घोड़ी पर गया। up मे भी दलितो ने जब पुरी पुलिस सुरक्षा मे वोटिंग कि तो नतीजा हमारे सामने है। इसके अलावा ब्राह्मणों ने दलित नेतृत्व मे जो आस्था दिखाई है वो भी अजूबा है। मनुवाद से मायावाद तक का जो रास्ता ब्राह्मणों ने अवध मे नापा है यो सारे हिंदुस्तान मे भी दिखाई देगा? कम से कम मै तो यही चाहता हु। शायद आप भी यही चाहते हो।
2 comments:
भई, ये तो एक प्रयोग किया है मायावती ने, जिसे दुनिया ने सोशल इन्जीनियरिंग का नाम दे दिया है।
वक्त मुफ़ीद था, सत्ताधारी दल, मस्ती मे चूर था, उसे तो बस यूपी मे बहुत दम है दिख रहा था। बीजेपी पस्त थी, सीडी ने सारी हवा निकाल दी थी, संगठन मे भी मजबूती नही थी। कांग्रेस तो कभी अमेठी से बाहर निकल ही नही सकी, बस राहुल बाबा के रोडशो देखती रह गयी। माया ने मेहनत की थी, जिले से ब्लॉक स्तर पर। आज भी उससे पूछ लो, ब्लॉग लेवेल के बन्दे का नाम तक पता होगा। चुनाव ऐसे ही लड़े जाते है।
माया की माया चल निकली है। कभी तथाकथित मनुवादीयों को गरियाने से ही अपनी राजनीति का सफ़र शुरु किया था। आज इन्ही लोगों को नारा दिया लात लगा छाती पर ब्राह्म्ँण चढ़ गया हाथी पर। दशक पहले भी मायावती मुख्यमंॼी बनी थी। वैशाखी की सरकार थी। आज महज़ 6 फ़ीसदी ब्राहम्ण वोटों की बदौलत लखनऊ तक अकेली ही पहुँच गयी हैं। इसके लिए बधाई की पाॼ है। आज भी जात-पात की नीति उ.प्र में लागू है। भुलावा न पाले अभी तो खग्रास बाक़ी ही है।
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