Tuesday, 29 May 2007

मनमोहनी निवेदन-1

हां तो भाई हमारे प्रधानमंत्री ने मोटे businessmans से कहा कि आप jyada मत कमाये। फायेदा कम ले और गरीबो तक अपना juthan पहुँचने दे। ये उस प्रधानमंत्री का संबोधन है , जिन्होंने 1991 मे इन्ही लोगो के सामने लाल कालीन बिछा दी थी। एक बार तो आपने उन लोगो के मुह मे ख़ून का स्वाद लगा दिया। अब आप उनसे इल्तेजा कर रहे है कि "आप हिंदुस्तान कि गरीबी को हटाने मे अपना योगदान दे।" सत्ता हासिल करने के ३ साल तक आप कि नीतिया उद्योगपतियों के फायेदे के लिये थी। अब चार election का हारे कि होश ठिकाने आ गए। अब सुदामा बन कन्हैया को माखन लगा रहे है।

Sunday, 27 May 2007

नैतिकता और मानसिकता

शायद फिल्म " खलनायक " का गाना ' चोली के पिछे क्या है' आप ने सुना होगा '। फिल्म ख़्वाहिश में सत्रह चुंबन होने को भी बहुत चटख़ारे लेकर लोगो ने देखा। 'मर्डर' फिल्म ने कितनों का मर्डर किया, बताया नही जा सकता। ये सब कुछ फिल्मो मे हो तो सही ? है। राह चलते अगर आप ने किसी को ऐसा कुछ करते देख लिया तो , तो जुबान से ये निकलते देर नही लगेगी कि " कितने बेशर्म है। " हालांकि जानकारो का कहना है कि फिल्मे हिंदुस्तान का सामाजिक आइना है। तब फिर हल्ला क्यो। यानी समाज मे भी ऐसा कुछ हो रहा है।

कुछ समय पहले तक भारतीय फ़िल्मों में चुंबन की जगह दो फूलों का टकराना या दो चिड़ियों का चोंच लड़ाना ही दिखाया जाता था।हाँ फूहड़ बोलों, कूल्हे मटकाने और अश्लील द्विअर्थी संवादों पर कोई रोक नही थी। सेक्स के बारे में भारतीय मध्यम वर्ग के विचारों में भी इसी तरह के अंतर्विरोध नज़र आते हैं.

" समलैंगिकता, विवाह पूर्व और विवाहेतर संबंध आम बात हैं लेकिन आधुनिक भारतीय पुरूष अभी भी मानता है कि वो शादी एक वर्जिन यानी कुँआरी कन्या से ही करेगा।" विवाह पूर्व यौन संबंधों को जायज़ ठहराने के लिए नैतिक मूल्यों का सहारा लिया जाता है और कहा जाता है कि अगर कमिटमेंट है तो इसमे कोई बुराई नही। हालांकि ये सिर्फ कहने कि बात है। इसमे भी मर्दो को ही अधिकार है कि वो दुसरी या तीसरी औरत से संबंध बनाए । अगर कही किसी औरत से ऐसा कुछ हुआ तो फिर उसकी खैर नही। आम तौर पर लड़के, लड़कियों (माल ) को परेशान करना अपना जनम सिद्ध अधिकार समझते है। ग्रुप मे जो ये ना करे वो " बीच का" । लेकिन अगर कोई आप कि बहन के साथ वही करे तो आप मारा मरी कर लेंगे।

मध्यम वर्ग मे स्त्री-पुरूष संबंध अभी भी पुरूषवाद के दुर्ग हैं।मियाँ और बीवी अगर साथ-साथ दफ़्तर से वापस घर लौटते हैं तो मियाँ मेज़ पर पैर फैलाकर अख़बार पढ़ता है और बीवी से उम्मीद रखता है कि वो फेंटा कसकर रसोई मे जाए और उसके लिए चाय बनाए.
-हमारे यहाँ अभी भी ज़्यादातर मध्यमवर्गी लड़के लड़कियाँ तयशुदा शादियाँ करते हैं।लड़कों से पूछा जाए तो वो कहेंगे कि फ़्लर्ट करने के लिए ऐसी-वैसी लड़कियाँ ठीक हैं लेकिन हम शादी ऐसी लड़की से करेंगे जो घर-गृहस्थी चलाए, माँ बाप की सेवा करे और वफ़ादार रहे.सेक्स के प्रति लोगों के नज़रिए मे पहले की तुलना मे लचीलापन आया है लेकिन खुलेआम अपनी सेक्सुएलिटी पर चर्चा करने मे वो अभी भी शर्माता है.
-हालांकि सच ये है कि , लोग खुलेआम मानने को तैयार हैं कि यहाँ अमरीका की तरह किसिंग न होती हो लेकिन हाथ-वाथ वो चैन से फेर ही लेते हैं अपनी पसंदीदा दोस्त पर." और तो और लड़कियों मे भी कुछ इसी तरह का "खुलापन " आया है। कोई भी लडकी आज " पोपट लाल या चम्पक लाल " जैसा लड़का नही चाहती।

उर्दू है जिसका नाम

" उर्दू है जिसका नाम ,

हमी जानते है 'दाग' ,

सारे जहा मे धूम ,

हमारी जबान की है।"


दाग देहलवी का ये शेर १५० साल पुराना है। इतने दिनों मे न जाने यमुना मे कितना पानी बह चूका। कितनी सरकारे दिल्ली के तख़्त पर बैठी। पर किसी ने उर्दू के लिये शायद ही कुछ किया हो। अगर यु कहा जाये कि, २०वी शताब्दी उर्दू भाषा, साहित्य, और पत्रकारिता कि उन्नति और पतन दोनो कि शताब्दी थी, तो शायद गलत ना हो। किसी भी भाषा कि उन्नति का दारोमदार संचार माध्यम पर होता है। आज सुरतेहाल ये है कि उर्दू का कोई मकबूल अख़बार या मशहूर पत्रिका नही है। काफी प्रसार संख्या वाली पत्रिका 'शमा' १९९९ मे बंद हो गई। उर्दू अखबार 'हिंद समाचार ' कि प्रसार संख्या रोज कम हो रही है। उर्दू कि मकबूल पत्रिकाये एक एक कर बंद हो रही है। २००५ मे एक अहम पत्रिका 'शब् ख़ून' ४० वर्षो का सफ़र पुरा कर बंद हो गयी।

- गुजरे साल केंद्र सरकार ने एक उर्दू चैनल शुरू किया था। १५ अगस्त से शरू हुआ ये चैनल अभी तक हवा मे ही है। दरअसल सरकार उर्दू की तरक्की के लिये संजीदा नही है। हाल के दिनों मे fm रेडियो के आने से ना सिर्फ रेडियो बच गया है बल्कि ये हिंदी जुबान को भी फायेदा पहुँचा रह है। उर्दू शायरी अब भी मशहूर है। मगर अब इनकी किताबे नही बिकती। शायरी कि किताबे तो उर्दू से ज्यादा हिंदी लिपि मे बिकती है।

- हिंदुस्तान के ८० universities मे उर्दू department तो है लेकिन उनमे तलबा कि तादाद कम हो रही है।

- एक और बात है जो उर्दू को मकबूल और मशहूर बनने से रोकती है वो ये कि ' इसे सिर्फ मुसलमानो कि भाषा मान लिया गया है।' और इस बात से तो कोई भी इनकार नही कर सकता कि उर्दू भाषा को देश भर मे फैले ३०,००० madarso ने ही जिंदा रखा हुआ है। इसके अलावा मीडिया और फिल्मो मे इस मीठी जुबान को लोग आज भी जिंदा किये हुये है।

- उर्दू के शोध मे भी जो काम हुआ है वो सब universities के बाहर ही हुआ है।

- मुशायेरे आज भी उर्दू समाज और तहजीब का हिस्सा है। गौर करने वाली बात ये है कि अब मुशायेरे सिर्फ भारत मे ही नही बल्कि अमेरिका, कनाडा , ब्रिटेन और अरब मुल्को मे भी हो रहे है। यहाँ भारत के कई shayaroo को भी बुलाया जाता है। मगर इससे यह खुशफहमी नही होनी चाहिऐ कि उर्दू बहुत तरक्की कर रही है। बात सिर्फ इतनी सी है कि वहा हिंदुस्तान - पाकिस्तान के बहुत से लोग रहते है। उन्हें तफरीह के लिए इस तरह कि मह्फीलो कि जरुरत महसूस होती है। इसका उर्दू के प्रचार प्रसार से कोई मतलब नही है।

- सेमिनार और मुशायेरे हो रहे है। किताबे छप रही है। १२ से ज्यादा उर्दू akadmiya भी कायम है, जो जलसे , सेमिनार, वाद विवाद करवाती रहती है। लिखने वालो को सम्मानित भी करती है।

मगर सच्चाई यही है कि उर्दू जानने वालो का दायरा कम होता जा रह है। उर्दू जानने वालो कि तादाद भी कम जा रही है। भारत कि तमाम प्रादेशिक भाषाओ मे बहुत सी पत्र पत्रिकाये है। मगर उर्दू के पास एक भी नही। सारे जहाँ मे उर्दू जबान कि धूम तो आज भी है। इसके बावजूद यह बेसहारा है।

" चाहने वाले बहुत है

फिर भी मेरा कोई नही,
मैं भी इस मुल्क मे

उर्दू कि तरह रहता हु। "

Saturday, 26 May 2007

असुविधा के लिए खेद है- 2

हां तो असुविधा के लिए खेद है ------

किसे है , मुझे है, आपको है ------------

हर उस बन्दे को है जो DTC के बस मे सफ़र करता है।
- उस असुविधा के लिये जो फटे गद्दो और टूटी सीटो पर अपना वक्त गुजारने से होता है।
- उस असुविधा के लिये जो उसे सवारियो से भरी बस मे आगे के दरवाजे से आ जाने के बाद टिकट लेने के लिये हुई मारामारी से होता है।
- उस असुविधा के लिए जब महिलाओ के लिए आरक्षित सीट पर पुरुष सवार हो जाते है।
- उस असुविधा के लिए जब आप बस मे टिकट ना ले सके और चेकिंग हो जाये।
- उस असुविधा के लिए जब बारिश हो रही हो और आप कि सीट का शीशा टुटा हो।
- उस असुविधा के लिये जब किसी सीट पर खुबसुरत बाला ( like मधुबाला ) विराजमान हो, और आप के वहा तक पहुचने से पहले कोई दुसरा वह पर विराज जाये।
- उस असुविधा के लिये जब दफ्तर मे डाट सुनने का अंदेशा हो और बस स्टोप पर बिना रुके निकल जाये।
- उस असुविधा के लिए जो किसी और के लिए सुविधा हो सकती है। सवार हुए बटुए के साथ - पर उतरे खाली जेब के साथ।
- उस असुविधा के लिए जब आप कि बोतल मे पानी ना हो और बस जाम मे फँस जाये।
- उस असुविधा के लिये जब ऑफिस जाने कि जल्दी हो और बस खराब हो जाये, या बस पंक्चर हो जाये।
- उस असुविधा के लिए जब आप नहा कर न जा रहे हो, आपने शेव ना बनाईं हो और बगल कि सीट पर एक हसीना आ जाये।
- उस असुविधा के लिए जब बगल सीट पर बूढी बैठी हो।
- उस असुविधा के लिए जब बस मे कोई दुर्घटना हो जाये और आपातकालीन दरवाजा लॉक हो।
-----------तो भाई असुविधा बहुत हो गई। अगली बार सुविधा पर बात होगी। तब तक जय राम जी की।

असुविधा के लिए खेद है




हाल ही मे अपने कुछ दोस्तो के साथ मनाली जाने का मौका मेला। हम ४ लोग थे। हमने अपनी शिफ्ट इस तरह से सेट कि की रात १२ बजे हम लोग अपने ऑफिस से निकले। करीब आधा सफ़र हमने रात मे पुरा किया क्योकि हम चाहते थे कि मनाली पर जाने के रास्ते मे मिलने वाली हसीन नज़ारे हम से मिस ना हो। हुआ भी कुछ ऐसा ही। सर्पिली सड़क पर हमारी जिप्सी बल्खाते हुए चल रही थी।

यहाँ हमे कई जगह " असुविधा के लिए खेद है" लिखा मिला। हालाकि ये असुविधा हमारी सुविधा के लिए थी। लेकिन गम्भीरता से सोचा जाये तो हिमाचल प्रदेश मे विकास के नाम पर paharo के सिने पर बारूद से विस्फोट करना कहा तक सही है। हमारे विकास कि गरमी से जहा एक तरफ हिमशिखर पानी बन बहते जा रहे है। वही दुसरी तरफ सुविधा के नाम पर "असुविधा के लिए खेद है" का खेल बचे खुचे हिमशिखर को भी लील जाएगा।
जरा इन पर नजर डाले ----------

---- गढ़वाल हिमालय का गंगोत्री ग्लेशियर २५ मीटर प्रति साल कि रफ़्तार से घट रह है।
----- आज paharo कि नदी ghatio मे कम से कम १२२ बिजली परियोजनाओ पर काम चल रहा है। इनके लिए लंबी सुरंगे खोदी जा रही है। और भारी भरकम मशीनों को प्रोजेक्ट्स पर पहुचाने के लिये रास्ते बनाए जा रहे है।
- experts का कहना है कि हिमाचल मे जल विद्युत कि capacity १५१०९ मेगावाट कि है। इन प्रोजेक्ट्स पर काम चल रह है। और इनके लिये ७०० किलोमीटर सुरंगे खोदी जानी है। Experts का ये भी कहना है कि इस राज्य मे ४०००० मेगावाट तक बिजली बनायीं जा सकती है। इसके लिये हजारो किलोमीटर सुरंगो कि जरुरत होगी। उस स्थिति मे यहाँ के करीब हर pahar के जिस्म पर छेद करना होगा।
- तो भाई बिजली तो चाहिय ही। तब ऐसी " असुविधा के लिये खेद होना " कोई गम्भीर बात नही होगी। है ना।

हम तो ऐसे ही है

हां तो आप औरतो को परदे मे रखेंगें, वो घूँघट मे रहेंगी, बुरका पहनेंगी। लेकिन शौच के लिये वो खुले मे जाये तो आप को कोई ऐतराज़ नही होगा। आप अजंता, एलोरा जाये। कामुक कला का दर्शन करे। या यो कहे कि अपनी समृद्ध विरासत को देखे। लेकिन अगर अपने उसे कागज पर उकेरा तो आप कि खैर नही। बंद हाल के अन्दर फिल्मी परदे पर नायिका को झिलमिल ड्रेस मे देखना सही है। क्या पहने क्या रखे जैसी हालत मे आज हिंदुस्तान कि लाखो औरते आधे लिबास मे जिन्दगी काट रही है। लाखो बच्चिया पेट मे ही मार दी जा रही है। जो बच गई वो बचपन मे आधा खाना खा कर जीती है। अगर बचपन मे जुल्म से दो चार नही हुईं तो कभी बसो मे निशाना बनेगी। वह भी बच गई तो ससुराल मे तो मार खायेगी ही। लेकिन आप को इससे कोई मतलब नही है। बस आप ये देखे कि कोई देवियों कि मूर्ति ना बनाए। ये मूर्तिया भी कम ज़ालिम नही है। कोई इन्हें देख कर पूजता है। पूजने के तरीके अलग हो सकते है। लेकिन आप चाहेंगे कि जो आप को अच्छा लगे लोग वही करे। लोग मूर्ति पूजे तो सिर्फ भभूत से, कलम और कूची से नही। अगर आप कूची उठाएंगे तो वो तलवार उठा लेंगे। वो अपनी आदत से मजबूर है। वो हर बात को हिंदु अस्मिता से मिलाएँगे । क्या आप भी अपनी आदत से मजबूर है, कि जो सही है , वो सही है। तो आप कि आदत को सलाम ...............

मेरा नाम चिन चिन चु

सुबह के दस बज रहे होंगे , हम सब लोग अपने अपने कंप्युटर पर स्टोरी एडिट कर रहे थे। केबिन मे लगा टीवी, न्यूज़ सुना रह था। लोग सुन रहे थे कि नही, ये और बात है। टीवी पर न्यूज़ बोल रही सुंदर बाला खास खबरे पढ़ रही थी। खबर ... आज भी प्रदेश मे ऐसे लोग है जो चूहे खाते है। ये खबर सुन कर मेरे साथ काम करने वाली दोस्त(शायद अब ना रहे ) ने कहा, आज भी लोग चूहे खाते है। उसके बोलने और चेहरे पर आने वाला भाव कुछ इस तरह का था कि उसने ये बात पहली बार सूनी हो। दिल्ली मे पली और पढी ये लडकी शायद असलियत से अनजान है। बिहार मे एक ऐसा तबका है जिसका नाम ही मुसहर है। ये लोग सदियों से खेतो मे चूहे के बिलो मे से चावल निकाल कर खाते है और इसके साथ अगर चूहा और कोई सब्जी हो तो वह दिन इन लोगो के लिये दिवाली से कम नही होता। ये इन लोगो कि किस्मत कहा जाये या विकास कि उलटी दिशा मे होना, आजादी के ६० साल बाद भी ये लोग चूहे खाने को अभिशप्त है।
...ये सच्चाई है उस नई जमात के पत्रकारो कि जो सिर्फ पत्रकारिता कि चकाचौंध को देख कर आ तो गए है, लेकिन उन्हें सच्चाई से दूर दूर तक वास्ता नही है। अभी कुछ दिन ही हुए है जब 'जनसत्ता' मे ' दुनिया मेरे आगे' मे एक पत्रकार का अनुभव आया था जिसमे उन्होंने अपनी बस यात्रा का वर्णन किया था। इस लेख मे लेखक ने पत्रकारिता कर रहे एक लड़के से पुछा कि' विनोद दुआ और प्रभाष जोशी कौन है जानते हो', तो उस महाशय का उत्तर था' नही'। और जब उन्होने पुछा कि, आप को क्या बनना है, मसलन , खेल पत्रकार, फिल्म पत्रकार या कुछ और। उस लड़के ने जवाब दिया कि, उसे न्यूज़ रीडर बनना है। .....ये है वो असलियत जो आज कल के नए पत्रकारो कि सोच बयां करता है। इस लिये बचे रहीये इन चिन चिन चु से।

हमारी भी सुनो-2






'धरम ग्रंथ सब जला चुकी है, जिसके भीतर कि ज्वाला,
मंदिर, मस्जिद, गिरजे सबकुछ तोड़ चूका जो मतवाला,
पंडित, मोमिन, पादरियो के फंदो को जो काट चूका,
कर सकती है, आज उसी का स्वागत मेरी मधुशाला'।
-----ये मधुशाला हरिवंश राए बच्चन कि है। पर उत्तर प्रदेश मे मायावती को मिली जीत कुछ ऎसी ही है। सारे जात पात को किनारे रख कर मायावती को मिला समर्थन सोशल इंजीनियरिंग कि एक मिसाल है। सब से ज्यादा उँची जात वालो कि आबादी वाले राज्य मे एक दलित का सर्वोच्च पद प्राप्त करना यह दिखाता है कि समाज के निचले स्तर पर परिवर्तन हो रहे है। हंस का दलित अंक जिन्होंने पढा होगा, या प्रेमचंद के लेख और उपन्यास पढे होंगे वो सब इस बात से अनजान नही होंगे कि दलितो कि आज से ६०-७० साल पहले क्या हालत होगी। अभी कुछ दिन पहले ndtv पर ये खबर आयी थी कि नागपुर मे एक दलित को घोड़ी पर नही चढ़ने दिया गया। फिर उस दलित ने अपने संवैधानिक अधिकारो का इस्तेमाल किया और पुलिस कि निगरानी मे दुल्हन को लाने घोड़ी पर गया। up मे भी दलितो ने जब पुरी पुलिस सुरक्षा मे वोटिंग कि तो नतीजा हमारे सामने है। इसके अलावा ब्राह्मणों ने दलित नेतृत्व मे जो आस्था दिखाई है वो भी अजूबा है। मनुवाद से मायावाद तक का जो रास्ता ब्राह्मणों ने अवध मे नापा है यो सारे हिंदुस्तान मे भी दिखाई देगा? कम से कम मै तो यही चाहता हु। शायद आप भी यही चाहते हो।

हैदराबाद बम विस्फोट




दिन - शुक्रवार , वक्त - जुमा कि नमाज का, मोबाइल नियंत्रित डिवाइस से विस्फोट। विस्फोट मे ११ मरे। फिर लोगो ने-? दुकानों से सामान लूटना शुरू किया। पुलिस ने गोली चला दी, ३ लोग मरे।
---एक के बाद एक जैसे कोई पटकथा चल रही हो। यानी सब कुछ पहले से सोचा समझा था। हालाकि ये अभी जाच का विषय है कि इसके पीछे कौन लोग है। लेकिन इन लोगो का क्या प्लान था इसमे कोई शक नही है। दो समुदाय के बीच नफरत फैलाना ही इसका मकसद था।
--जिस वक्त विस्फोट हुआ उस वक़्त मई भी दिल्ली कि एक मस्जिद मे नमाज पढ़ रह था। नमाज बाद जब एक होटल मे खाने गया तो ये खबर पता चली। एक सबसे तेज चैनेल का एंकर , teleprompter को देख कर चीख रह था। '' विस्फोट मे बाहरी हाथ है। लश्कर या सिमी कि साजिश है।'' यानी विस्फोट हुआ नही कि और इनलोगो को पता चल गया कि इसके पिछे कौन है। यही वो वक्त रहता है जब किसी खबर का विश्लेषण कर जनता को ये बताया जाये कि हुआ क्या है। और लोग शांति बनाए रखे। ये नही कि सबसे तेज़ के चक्कर मे जो मिले वो बोल दे। ऐसे भी किसी भी विस्फोट मे 'बाहरी हाथ' बता देना आज कल पुलिस और 'सबसे तेज ' जैसो का शगल बन चूका है।

Thursday, 17 May 2007

रैगिंग पर रोक

हां तो भाई रैगिंग करोगे तो जेल जाओगे। कोर्ट के कहने पर सरकार कानून बनाएगी। सरकार का काम ही है कि समस्या आई नही कि आम लोगो के फायदे मे कानून बनाना। बेचारी सरकार जनता का कितना ख़्याल रखती है। अब उसके बनाए कानून का कितना पालन हो रहा है, ये देखना सरकार का काम नही है। बाल श्रम निरोधक कानून बन गया और हिंदुस्तान भर के बाल श्रमिक मुक्त हो गए। इसी तरह अब रैगिंग भी कालेज मे नही होगी। अब ना कोई बच्चा रैगिंग कि वजह से कालेज से भागेगा। और ना किसी का बच्चा आत्महत्या करेगा।

हां, तो भाई अब कालेज मे रैगिंग करोगे तो क्रिमिनल केस बनेगा।

Sunday, 13 May 2007

मेरा निवेदन

अपनी एक दोस्त के कहने पर मैंने सिर्फ दो दिन पहले ब्लाग लिखना शुरू किया है। इन दो दिनों सच कहु तो ब्लाग का नशा हो गया है। अभी साल भर पहले पत्रकारिता का कोर्स पुरा किया है। कुछ महिने ' जनसत्ता' मे अंशकालिक संवाददाता रहने के बाद अभी एक जानी मानी संवाद समिति मे हु, और तन्खाह पा रहा हु। यहाँ का हर दिन कुछ नया सिखने को मिलता है। कुछ ऐसे दोस्त भी मिले जिन से मिलने पर दिल्ली मे अकेले रहने का एहसास नही होता।

ब्लाग के इस समुन्द्र मे नया गोताखोर हू। गलतियों के लिए माफी और बहुमूल्य सलाह के लिए स्वागत है।

अगर आपसब मेरे इस निवेदन को स्वीकारेंगे तो मुझे अच्छा लगेगा। हो सकता है कि इसके ज़रिए हम ब्लॅाग के अपने सभी साथियों के बीच कुछ रोचक जानकारी बांट सकें।

शुक्रिया
कामरान परवेज़

Saturday, 12 May 2007

हमारी भी सुनो

जिस वक्त UP के रिजल्ट आ रहे थे , उस वक्त UPA के नेता ' मुतुवैल करूणानिधि ' के राजनितिक सफ़र के ५० साल पुरा होने के जश्न मे शामिल हो chennai me थे । ५ दशक पहले तमिलनाडु मे शुरू हुआ परिवर्तन अब बिहार और UP मे नजर आने लगा है। विधान सभा मे बहुमत मिलने कि सुचना के बाद मायावती का सतीश मिश्रा और नसीमुद्दीन सिद्दीकी के साथ मीटिंग करना उस फोर्मुले कि झलक दिखाता है जो देश के सबसे बडे सूबे मे कामयाब हुआ।
हां तो भैया हाथी हिट हो गया , और कमल पिट गया, नेता जीं को तो हारना ही था। आज आया UP का result इस बात को और मजबूत करता है कि UP के लोग bjp और संघ परिवार के खीलाफ है। इसके अलावा bsp ने जो नया फार्मूला निकाला है दलित + मुस्लिम + ब्राहमण, का वो कम से कम Up मे तो सही हो ही गया। अब bsp अपने दम पर सरकार बनाएगी। ये कोई मामूली बात नही है कि bjp के UP करीब करीब सभी तजुर्बेकार नेता हार गए। इन नतीजो से ठाकुर राजनाथ सिंह की adayaksh कि कुर्सी ख़तरे मे आ गई है।
--दरअसल इस chunaao me BJP कि कमान संघ ने संभाल रखी थी । BJP कि हार दरअसल संघ कि हार है। राजनाथ मिटटी के माधो साबित हुए है। BJP और कॉंग्रेस का ये कहना कि ये नतीजे समाजवादी पार्टी के खिलाफ है, असल मे अपनी हार छुपाना है। बीजेपी तो पंजाब और उत्तराखंड के बाद अवध जीतने का सपना देखने लगी थी। मुसलमानो के खिलाफ CD लाना , समाजवादी पार्टी के खिलाफ नरमी, पैसे को पानी कि तरह बहाना यानी सारी तैयारी थी। लेकिन प्रदेश कि जनता ने एक बार फिर लोकतंत्र मे अपनी आस्था दिखा कर संघ और कॉंग्रेस के आम आदमी साथ होने के नारे कि हवा निकाल दी। बीजेपी को सबसे अधिक नुकसान हुआ है। लगभग ७ फीसदी ज्यादा वोट पाकर मायावती ने इतिहास बना दिया। ये ७ फीसदी वोट मुसलमानो के है। इन्ही के बल पर मायावती ने पहले कि ९८ विधायको कि जगह २०८ विधायको को विधानसभा मे पंहुचा दिया। मुलायम सिंह यादव को भी .०२ फीसदी ज्यादा वोट मिले। कॉंग्रेस को .०१ फीसदी ज्यादा वोट मिले। लेकिन उनके विधायको कि तादाद २५ से २१ ही रह गई। बीजेपी कि तो लुटिया ही बह गई। उसे ३ फीसदी कम वोट मिले। और वह ८८ से गिर कर ४९ पर आ गई।