हां तो आप औरतो को परदे मे रखेंगें, वो घूँघट मे रहेंगी, बुरका पहनेंगी। लेकिन शौच के लिये वो खुले मे जाये तो आप को कोई ऐतराज़ नही होगा। आप अजंता, एलोरा जाये। कामुक कला का दर्शन करे। या यो कहे कि अपनी समृद्ध विरासत को देखे। लेकिन अगर अपने उसे कागज पर उकेरा तो आप कि खैर नही। बंद हाल के अन्दर फिल्मी परदे पर नायिका को झिलमिल ड्रेस मे देखना सही है। क्या पहने क्या रखे जैसी हालत मे आज हिंदुस्तान कि लाखो औरते आधे लिबास मे जिन्दगी काट रही है। लाखो बच्चिया पेट मे ही मार दी जा रही है। जो बच गई वो बचपन मे आधा खाना खा कर जीती है। अगर बचपन मे जुल्म से दो चार नही हुईं तो कभी बसो मे निशाना बनेगी। वह भी बच गई तो ससुराल मे तो मार खायेगी ही। लेकिन आप को इससे कोई मतलब नही है। बस आप ये देखे कि कोई देवियों कि मूर्ति ना बनाए। ये मूर्तिया भी कम ज़ालिम नही है। कोई इन्हें देख कर पूजता है। पूजने के तरीके अलग हो सकते है। लेकिन आप चाहेंगे कि जो आप को अच्छा लगे लोग वही करे। लोग मूर्ति पूजे तो सिर्फ भभूत से, कलम और कूची से नही। अगर आप कूची उठाएंगे तो वो तलवार उठा लेंगे। वो अपनी आदत से मजबूर है। वो हर बात को हिंदु अस्मिता से मिलाएँगे । क्या आप भी अपनी आदत से मजबूर है, कि जो सही है , वो सही है। तो आप कि आदत को सलाम ...............
Saturday, 26 May 2007
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1 comment:
कामरान जी,आप क लेख सोचने को मजबूर करता है।अच्छा लेख लिखा है।
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